Tuesday, February 27, 2018

उन घर की दीवारों में कोई आंसू तो नहीं है !


१)
जहाँ भी लौट कर आया हूँ
मिला है मुझे
एक पूरा घर तुम्हारे पास

तुम्हारा इंतज़ार
बना देता है किसी भी घर को मेरा अपना

इतने सालों तक अलग-अलग घरों में
तुम्हारे साथ रहते हुए
अब ये भली भांति पता है कि
घर बनाने के लिए
और कुछ नहीं
जरूरी है सिर्फ लौटना और इंतज़ार

२)
यह इतनी बार इत्तेफाकन नहीं होगा
कि तुम मेरी नींदों में
ख्वाब भरती हुई जगाती हो सुबह
और तब से
सारा दिन लम्हों को पकड़-पकड़ के
बांधती रहती हो एक खुशनुमा बादल वाला दिन
जिसकी शाम बारिश होती है

बाथरूम से नहा कर निकलते हुए
शरारतें तुम्हारे बालों में
इकठ्ठा होकर लट बना देती हैं
और तुम उन्हें कैसे झूठमूठ झटकती रहती  हो
झूठ को कितना अच्छा लगता तब न!

किचेन में गुनगुनाती हुई
पकाती हो तुम सारंगी के जायके वाली
लौकी की सब्जी
और परोस देती हो जब दही के साथ
तब मुझे कुछ और नहीं चाहिए होता है

मैं होता हूँ तो तुम्हें कुछ और नहीं चाहिए होता है

३)
तुम्हारा इंतज़ार करता हुआ घर
मुझे लगता है
उस बहते पानी की कलकल धुन है
जो मंजिल पे पहुँचने की तमाम बेचैनी के बावजूद
अपने लय की मिठास नहीं छोड़ती

वो मुझमें भरता है
एक बिछोह से
जब जाने के लिए लौटता हूँ

वो मेरे पीछे दूर तक भागता चला आता है
मुझे मनाता, मनुहार करता हुआ

४)
गुनगुनी हंसी
और मीठी बोलियों से
संजोये रखती हो तुम घर की दीवारें
और कभी बनाती हो उनपे निशान ठहाकों से
ताज्जुब कराने को रखती हो तैयार
घर में दसियों औजार
तब लगता है कि घर की दीवारें ईंट और गारे से नहीं बनती होंगी केवल
नहीं तो वो कहाँ सुनती-बोलती

कभी होगा तो हम चल कर जाएंगे उन घरों के पास
जो बनाये हमने
लौटने और इंतज़ार करने से
और देखेंगे कि
कहीं उनकी दीवारों में कोई आंसू तो नहीं है !



Saturday, February 24, 2018

विरोध के लिए प्रेम!

मैं तुम्हारे इश्क में डूब जाना चाहता हूँ
इतने गहरे डूबना कि
वो प्रदर्शित हो सके

तुम्हारे या फिर किसी और के इश्क में भी
डूबना स्वीकार्य है मुझे

यह तब है
जब मुझे बताया जा रहा है
कि प्रेम करने के खतरे असहनीय रुप से बढ गये हैं
और विरोध करने के भी

क्यूंकि मेरा डर मेरे विरोथ को दबा देता है
मैं किसी के भी प्रेम में डूब कर
प्रेम और विरोध के खतरों के विरोध में होना  चाहता हूँ

पर तुम्हारे प्यार में डूबना ज्यादा अच्छा रहेगा न
पुरजोर विरोध के लिए!

Saturday, January 6, 2018

पानी चला गया है मुझसे कई गुना दूर

पानी चला गया है मुझसे दूर
मुझसे कई गुना दूर

वो कस कर भींच लेता था जब कभी
तो नसें सींच जाती थीं  
और मुझे भरते हुए उसका उतरते जाना
एक झरने की तरह था 
जिसके बाद कल-कल निर्मल हर तरफ

सोंचती हूँ
वो अब कहां बहता होगा
मेरी सूखी आँखों में उसके तलाश की एक तस्वीर है
जिसे उलट-पलट कर
किसी भी तरफ से देखने पर
वह बहता हुआ दिखाई नहीं देता   

वह बहता हुआ दिखाई नहीं देता   
कि अब बहने को
एक नितांत अकेलापन है जिसमें
कुछ बेमानी आवाजें टकराती हुई शोर करती हैं
जो बिलकुल हीं बे-पानी है

मैं चाहती हूँ
कि बहुत पीछे छूट गयी इस नदी को
वो वह पहला प्रेम-पत्र फिर भेजे
जिसे लिखते हुए वह पिघल कर पानी हुआ था
और अपनी छींटों से मुस्का दे मुझे 

वो आये
भींचे और फुटाये मुझमें फव्वारे
बहाए मुझे कल-कल 
कि यात्रा पूर्ण हो समंदर तक की