पानी चला गया है मुझसे दूर
मुझसे कई गुना दूर
वो कस कर भींच लेता था जब कभी
तो नसें सींच जाती थीं
और मुझे भरते हुए उसका उतरते जाना
एक झरने की तरह था
जिसके बाद कल-कल निर्मल हर तरफ
सोंचती हूँ
वो अब कहां बहता होगा
मेरी सूखी आँखों में उसके तलाश की एक तस्वीर है
जिसे उलट-पलट कर
किसी भी तरफ से देखने पर
वह बहता हुआ दिखाई नहीं देता
वह बहता हुआ दिखाई नहीं देता
कि अब बहने को
एक नितांत अकेलापन है जिसमें
कुछ बेमानी आवाजें टकराती हुई शोर करती हैं
जो बिलकुल हीं बे-पानी है
मैं चाहती हूँ
कि बहुत पीछे छूट गयी इस नदी को
वो वह पहला प्रेम-पत्र फिर भेजे
जिसे लिखते हुए वह पिघल कर पानी हुआ था
और अपनी छींटों से मुस्का दे मुझे
वो आये
भींचे और फुटाये मुझमें फव्वारे
बहाए मुझे कल-कल
कि यात्रा पूर्ण हो समंदर तक की