सरकार स्कूल अच्छा नहीं चला पा रही थी
तो उसने कहा
कि खेलना बहुत जरूरी है बच्चों के लिए
सरकार ऐसा बताना चाहती थी
कि देश से बेरोजगारी इस तरह
खत्म की जा सकती है
ऐसा शायद इसलिए था क्योंकि
गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ी भी
किसी चौक चौराहे पर
चाय - पकोड़े का रोजगार कर लेते थे
पर पढ़े लिखे लोगों में
बेकार या बेरोजगार होने की आदत हो जाती थी
जिसका कि बेरोजगारी के आंकड़ों पर बुरा असर पड़ता था
तो उसने कहा
कि खेलना बहुत जरूरी है बच्चों के लिए
सरकार ऐसा बताना चाहती थी
कि देश से बेरोजगारी इस तरह
खत्म की जा सकती है
ऐसा शायद इसलिए था क्योंकि
गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ी भी
किसी चौक चौराहे पर
चाय - पकोड़े का रोजगार कर लेते थे
पर पढ़े लिखे लोगों में
बेकार या बेरोजगार होने की आदत हो जाती थी
जिसका कि बेरोजगारी के आंकड़ों पर बुरा असर पड़ता था
सरकार बहुत सालों से गरीबी हटाना चाहती थी
इसके लिए वह कई योजनाएं भी लाती थी
और गरीबी हटाने का नारा देती थी
फिर उसने गरीबी के साथ गंदगी हटाने का भी नारा दिया था
योजनाएं कितनी आती थी इसका ज्यादा पता नहीं चलता था
पर नारे जरूर आ जाते थे और वे चलते रहते थे
इसके लिए वह कई योजनाएं भी लाती थी
और गरीबी हटाने का नारा देती थी
फिर उसने गरीबी के साथ गंदगी हटाने का भी नारा दिया था
योजनाएं कितनी आती थी इसका ज्यादा पता नहीं चलता था
पर नारे जरूर आ जाते थे और वे चलते रहते थे
एक समय पर आकर
सरकार को ऐसा लगा था कि नीति अच्छी हो तो बिना योजनाओं के भी काम चलाया जा सकता है
फिर किसी दिन सरकार की नीति में यह तय किया गया
कि गरीबी हटाने से बेहतर है गरीबों को हटा दिया जाए
और फिर उसने एक दिन उनसे कहा कि
अब से तुम हमारे देश के नागरिक नहीं होगे
सरकार को ऐसा लगा था कि नीति अच्छी हो तो बिना योजनाओं के भी काम चलाया जा सकता है
फिर किसी दिन सरकार की नीति में यह तय किया गया
कि गरीबी हटाने से बेहतर है गरीबों को हटा दिया जाए
और फिर उसने एक दिन उनसे कहा कि
अब से तुम हमारे देश के नागरिक नहीं होगे
चुनाव के ठीक पहले
अर्थव्यवस्था को बुखार हो जाता था
जिससे वो कूदने लगती थी
और जब बाद में पेरासिटामोल खाने के बाद
वह ठंडी पड़ जाती थी
और फिर उसे रिजर्व बैंक से उधार लेकर
रिवाइटल खिलाया जाता था
ताकि वह गर्म हो सके और थोड़ा दौड़ सके, चल सके
अर्थव्यवस्था को बुखार हो जाता था
जिससे वो कूदने लगती थी
और जब बाद में पेरासिटामोल खाने के बाद
वह ठंडी पड़ जाती थी
और फिर उसे रिजर्व बैंक से उधार लेकर
रिवाइटल खिलाया जाता था
ताकि वह गर्म हो सके और थोड़ा दौड़ सके, चल सके
न्यायालयों की प्राथमिकताएं बदलती रहती थी
कभी वह इस बात पर चर्चा करने लगती थी
कि राम कहां जन्मे या फिर वहां कोई घंटी मिली या नहीं मिली
और कभी किसी रेप केस पर हजारों पन्ने का फैसला पेश करती थी
ऐसा लगता था कि कानून अंधा होते हुए भी संवेदनशील था
और उसकी कोई तीसरी आँख थी जिससे वो
जिसे जब देखना चाहता था उसे तब देख लेता था
कभी वह इस बात पर चर्चा करने लगती थी
कि राम कहां जन्मे या फिर वहां कोई घंटी मिली या नहीं मिली
और कभी किसी रेप केस पर हजारों पन्ने का फैसला पेश करती थी
ऐसा लगता था कि कानून अंधा होते हुए भी संवेदनशील था
और उसकी कोई तीसरी आँख थी जिससे वो
जिसे जब देखना चाहता था उसे तब देख लेता था
और अदालतों के बाहर एक मीडिया की अदालत में
बहस देखकर
कई लोग यह मान लेते थे कि सारी समस्या
किसी खास तरह के लोगों की वजह से थी और इनका
देश निकाला करना बहुत जरूरी था
बहस देखकर
कई लोग यह मान लेते थे कि सारी समस्या
किसी खास तरह के लोगों की वजह से थी और इनका
देश निकाला करना बहुत जरूरी था
और उधर वह बेचारी नाबालिग लड़की रोती थी
जो किसी गैंगरेप के बाद पेट में पलते हुए बच्चे को
गिराने के लिए न्यायालय के आदेश का इंतजार करती थी
जिसे कोर्ट लगभग भूल सा गया था
जो किसी गैंगरेप के बाद पेट में पलते हुए बच्चे को
गिराने के लिए न्यायालय के आदेश का इंतजार करती थी
जिसे कोर्ट लगभग भूल सा गया था
सरकार रेप के क़ानून को सख्त से सख्त करती जाती थी
और सोंचती थी कि बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा के लिए
सख्त कानून बनाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था जो इतना प्रभावकारी हो
और सोंचती थी कि बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा के लिए
सख्त कानून बनाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था जो इतना प्रभावकारी हो
विकास के मायनों में एक महत्त्वपूर्ण बात
एयरपोर्ट के रास्तों को
बिल्कुल चमकदार बना दिया जाना था
शायद इसलिए कि
देश में दाखिल होने वालों और
देश से भागने वालों के मन में देश की चमकदार छवि बनी रहे
एयरपोर्ट के रास्तों को
बिल्कुल चमकदार बना दिया जाना था
शायद इसलिए कि
देश में दाखिल होने वालों और
देश से भागने वालों के मन में देश की चमकदार छवि बनी रहे
कुछ लोग कहते थे कि
मीडिया का जन्म लोकतंत्र को बचाने के लिए हुआ था
पर उसका किसी ने ब्रेनवाश कर दिया था और
अब वह जहां भी लोकतंत्र को देखती थी
सरेआम गोलियों से भून देने की बात करती थी
कुछ लोग इसे मीडिया का आतंकवाद कहते थे
पर ज्यादातर लोग चुप थे
मीडिया का जन्म लोकतंत्र को बचाने के लिए हुआ था
पर उसका किसी ने ब्रेनवाश कर दिया था और
अब वह जहां भी लोकतंत्र को देखती थी
सरेआम गोलियों से भून देने की बात करती थी
कुछ लोग इसे मीडिया का आतंकवाद कहते थे
पर ज्यादातर लोग चुप थे
कुछ पागल से लगने वाले लोग थे जो कहने लगे थे
कि अब मीडिया ने लोगों को आतंक-पसंद बना दिया था
और इस तरह लोगों को लगने लगा था कि
देश को शांति वाली अपनी छवि जल्दी से जल्दी छोड़ देनी चाहिए
कि अब मीडिया ने लोगों को आतंक-पसंद बना दिया था
और इस तरह लोगों को लगने लगा था कि
देश को शांति वाली अपनी छवि जल्दी से जल्दी छोड़ देनी चाहिए
सरकार जनता को समय-समय पर तोहफा दिया करती थी
और उसे लगता था कि यही उसका काम है
और वह कहना चाहती थी कि लोगों को समय-समय पर तोहफा मिल ही रहा है
तो वे अपने काम से काम रखें और उनका साथ दें
और उसे लगता था कि यही उसका काम है
और वह कहना चाहती थी कि लोगों को समय-समय पर तोहफा मिल ही रहा है
तो वे अपने काम से काम रखें और उनका साथ दें
ऐसा सालों सालों से हो रहा था था पर कुछ लोग थे और उनकी संख्या काफी अधिक थी
जो गांधी जी के तीन बंदरों से बेहद प्रभावित थे
जो न कुछ देखते थे, न सुनते थे और ना हीं कुछ बोलते थे
चाहे सरकार जो करे
जो गांधी जी के तीन बंदरों से बेहद प्रभावित थे
जो न कुछ देखते थे, न सुनते थे और ना हीं कुछ बोलते थे
चाहे सरकार जो करे
यह कविता
उन लोगों के बारे में ही है और मेरे बारे में भी
उन लोगों के बारे में ही है और मेरे बारे में भी
आप इसे कविता या जो चाहे मान सकते हैं
पर यह सरकार के बारे में बिल्कुल नहीं है !
पर यह सरकार के बारे में बिल्कुल नहीं है !