दिवाली है,
बोनस में थोड़ा वक्त मिला है
यादों की सफाई कर रहा हूं
कुछ समय के लिए छोड़ दो तो
कई तरह के झाड़ झंखाड़ उग आते हैं
और खड़े हो जाते हैं
उन यादों के सामने
जिन्हें मन अपने ड्राइंग रूम में
ठीक सामने रखना चाहता हैं
कि आते जाते जब जरा सी भी फुर्सत हो
तो उसके ठीक पास बैठने का सुकून हासिल हो
कुछ तो
मकड़ी के जालों जैसे हैं
बड़ी आसानी से साफ हो जा रहे हैं
और यादों की तस्वीर खुलकर साफ सामने आ जाती है
और कुछ जिद्दी, पुरानी जमी काई की तरह
छुड़ाए नहीं छूट रहे
ज्यादा खुरच दो
तो तस्वीर का कोई हिस्सा ही
साथ में बाहर लेकर आ जाए इस तरह
जैसे यादों के देह पर कोई घाव
सफाई के दौरान मिली हैं कई ऐसी भी यादें
जो टूटे-फूटे रद्दी के सामानों के अंबार के पीछे दबकर लगभग खो सी गई थी
पर जब मिल गई तो लगा वे वही थी, कहीं खोई नहीं थी
करीने से लगा दी है
एक-एक कर झाड़ पोछ कर
कई यादों को सहेज कर रख दिया है
ड्राइंग रूम में ठीक सामने तुम्हारी यादों को रखा है
वहां साफ सफाई होती रहेगी
© ओम आर्य