उम्मीद से शुरू करते हैं युद्ध की कविता
कविता चाहे कोई भी हो
उम्मीद का होना जरूरी मानते आए हैं कवि
और युद्ध के परिणाम में क्योंकि मुझे कोई उम्मीद नजर नहीं आती
मैं सोचता हूं उम्मीद को कविता के शुरुआत में रख देना ठीक रहेगा
और अगर बाद में आ जाए तो बाद में फिर देख लेंगे
क्योंकि युद्ध के बाद का क्या पता
तो पहली उम्मीद तो यह
कि खत्म हो यह युद्ध शीघ्र ही
और दूसरी कि आगे से तकनीकों का ठीक से इस्तेमाल हो युद्ध में
क्योंकि यह उम्मीद करना कि आगे से युद्ध ना हो
नासमझी की उम्मीद लगेगी
तो रोबोट से लड़े जाएं युद्ध, रोबोट मारे जाएं
और ठिकाने बर्बाद किए जाने किए जाने हो अगर
तो रोबोट के ठिकाने तबाह किए जाएं
राष्ट्राध्यक्ष मान ले अपनी हार या जीत रोबोटिक हार या जीत के आधार पर
अपने नाक के लिए या नाकामियों को छिपाने के लिए तथाकथित अपनों को तबाह ना करें राष्ट्राध्यक्ष
मिलती-जुलती एक उम्मीद और कि
आम अवाम को दूर रखा जाए युद्ध से
उन्हें बंकरो में ना जाना पड़े,
मजबूरी में चलकर देश की सरहद न लांघने पड़े
बच्चे स्कूल जाते रहे तथा कारखानों और अस्पतालों में काम होता रहे
सबसे अच्छा तो शायद यह होगा कि
किसी वीडियो गेम की तरह खेल लिए जाएं युद्ध
सारी दुनिया के संगठन उस युद्ध को माने सचमुच का युद्ध
मीडिया उसे उसी तरह का दिखाएं
लोग उसी तरह डरें और चर्चा करें आशंकाओं के बारे में
फिर सारी दुनिया लोहा मान ले जीतने वाले का
और हुकूमत सौंप दे उसके हाथों में
और फिर जब किसी राष्ट्राध्यक्ष को लगे
कि वह ज्यादा ताकतवर हो गया है
कि उसके पास एक अच्छी सेना है जो अच्छा खेल सकती है युद्ध को
तो ललकार ले जिसको चाहे उसे
कूल मिलाकर मेरा इतना कहना है
राष्ट्राध्यक्ष खोजें युद्ध का कोई एक नया तकनीकी विकल्प
जैसे उपनिवेशवाद के बाद खोजा गया नव-उपनिवेशवाद!
युद्ध का विकल्प हो सकता है
उम्मीद का भी हो सकता है क्या?