संकरी होती गयी ये गलियाँ
घरों को लांघती हुई
गलियों तक आ गयी ख्वाहिशें,
अतिक्रमण करते हुए.
और फिर गलियों से सड़कों तक.
ख्वाहिशों का जाम
आए दिन सुर्ख़ियों में रहता है...
जैसे धमनियों की अंदरूनी दीवारों पे
वसा की परतें
जम कर
लहू के दबाब को बढ़ा देती है
माफिक उसके हीं
ये अंधाधुंध फैलती ख्वाहिशें
दुनिया पर दबाब बढ़ाए जा रही है
अब बाजार घर में है
और घर बाजार ही ज्यादा है
जहाँ इंसान से ज्यादा ख्वाहिशों का बसेरा है
बाजार की मार बेशुमार है
और बमुश्किल ही कोई निकल पाता है
इनसे होकर बिना पिटे अब
नयी नस्लों के खातिर
बनाए जा रहे हैं फ्लाइ ओवर
बढ़ रही हैं ख्वाहिशों की गति ...और तेज और तेज
आज की तारीख में
लगभग १.२ मिलियन लोग
सालाना ख्वाहिशों के शिकार हो रहे हैं
और
एक अनुमान के मुताबिक
ikkisavi सदी के मध्य तक
होने वाली मौतों का साठ फीसदी
ख्वाहिशों के आपस में टकराने से हुआ करेंगी
और तब ये एड्स, डायबिटीज या मलेरिया जैसे रोगों से
ज्यादा गंभीर समस्या होगी।
3 comments:
अति विचारणीय एवं गंभीर रचना. बधाई.
आपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
बहुत सुंदर.... गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं...!
घरों को लांघती हुई
गलियों तक आ गयी ख्वाहिशें,
अतिक्रमण करते हुए.
और फिर गलियों से सड़कों तक.
ख्वाहिशों का जाम
आए दिन सुर्ख़ियों में रहता है...
Waah bhot sunder paktiyan....!
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