(मैं सोंचता हूँ कि जैसी मंदी का दौर है और नौकरियां जा रही हैं वैसे हीं अगर हमारी रूहों के हाथों से बदन छूट जाएँ और फ़िर मिलने में मुश्किल हो )
तुम अलावा हो !
अभी तुम्हारी जरूरत नही,
तुम्हारे लिए अभी कोई आरजू नही है खाली.
अभी सारे देह हैं भरे हुए
और अभी आने वाली नई देहों के लिए
तुम उपयुक्त भी नही और
वहां के लिए पहले से कतारें भी लगी हैं
तुम्हें अभी और देर
उधडा हीं रहना पडेगा
वसन से maharoom,
संघर्षरत.
अभी मंदी का दौर है
अभी देह छोड़ने की क्या पड़ी थी आख़िर
खैर उस वक्त तक अगर बचे रह सके,
जब देहों कि किल्लत नही रह जायेगी
तो तुम्हे भी टांक दिया जायेगा किसी बदन से,
मिल जायेगी तुम्हें भी साँस
पर तब तक तो
किसी तरह समय निकालो !
3 comments:
waah!
वाह!! क्या कल्पनाशीलता है. बहुत खूब!
जिस्म सौ बार जले फ़िर वही मिटटी का ढेला
रूह एक बार जेलेगी तो वह कुंदन होगी
Guljar ki ye panktiyan apaki ruho ko
vasan se mukt karti jan padti hai.
sachi ruho ko vasan ki koee awshyakta
nahi hoti hai.
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