अंतर्नाद
कविता...तेरे शहर में फिर आसरा ढूंढने निकला हूँ!
Thursday, June 9, 2011
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मुझे अफसोस है
सारा प्यार मैंने एक जगह हीं लगा दिया
नही रखा मैंने
तुम्हारे सिवा कोई दूसरा विकल्प
मुझे क्या पता था
कि बारिशें होती रहेंगी आगे
तुम्हारे बिना भी
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