रोजमर्रा की भागदौड़ में गिरते गए
और दोष मढ़ते गए गड्ढों के माथे
पता ही नहीं चलता अब सपनो का
जरूरतें जागती हैं सारी रात नींद के माथे
रहने दिया आखिर में बिना कुछ कहे
देर तक मगर हथेली रही आवाज के माथे
अब ये कहना मुश्किल बहुत है
गोली कौन दागेगा किसके माथे
उस समंदर पे बोझ कितना गहरा होगा
पानी वो नदी छोड़ गयी जिसके माथे
हर शाम वो एक तन्हाई लगा जाता है
पार्क के कोने में पड़ी उस बेंच के माथे
पेंड वो अभी कुछ देर पहले उजड़ गया है
कई सदी से लगा था वो इस जमीं के माथे
और दोष मढ़ते गए गड्ढों के माथे
पता ही नहीं चलता अब सपनो का
जरूरतें जागती हैं सारी रात नींद के माथे
रहने दिया आखिर में बिना कुछ कहे
देर तक मगर हथेली रही आवाज के माथे
अब ये कहना मुश्किल बहुत है
गोली कौन दागेगा किसके माथे
उस समंदर पे बोझ कितना गहरा होगा
पानी वो नदी छोड़ गयी जिसके माथे
हर शाम वो एक तन्हाई लगा जाता है
पार्क के कोने में पड़ी उस बेंच के माथे
पेंड वो अभी कुछ देर पहले उजड़ गया है
कई सदी से लगा था वो इस जमीं के माथे