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Sunday, September 19, 2010

रोने के लिए हमेशा बची रहे जगह

लोग झिझके नहीं गले लगने में
और गले लगना इसलिए हो कि रोया जा सके

कंधें बचे रहें
रो कर थके हुओं के सोने के लिए

हँसना एक फालतू सामान हो
और हर इतवार हम निकाल दें इसे रद्दी में
ताकि रोने के लिए हमेशा बची रहे जगह

कवितायें तभी हों
जब भर जाएँ उनमें दुःख पूरी तरह
और कहानियों में भी
रुला देने की हद तक हो अवसाद

किसी भी तरह
बचा ली जाए रोने की परंपरा
ताकि जब पता चले कि
तुम्हें प्यार में इस्तेमाल किया जा चूका है
तो तुम रो सको,
पढ़ सको कवितायें
और कहानियों का सहारा हो.


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