कुछ स्वर,
जो लब्जों के पनाह में
जगह नही पाते
उन खामोश स्वरों की रूहें
सदियों तक, इंतिज़ार करती हैं
कि शायद कभी कोई आवाज़,
कोई लब्ज आकर ,
उसे अपना जिस्म पहना दे
और उन कानों तक पहुँचा दे
जिनके लिए
उन्हे मौन में हीं छोड़ दिया गया था।
स्वर मरते नही,
वे कहीं छूट जाते हैं
मौन और लब्ज के बीच भटकते हुए।
वे दिखाई भी नही पड़ते
कि उन्हे कोई शब्द दिए जा सकें
पर वे रहते हैं
अपने वजूद में जिंदा।
अभी भी होंगें कई
हमारे आस पास,
फ़िज़ा में भटकते हुए
इसलिए किसी भी स्वर को बे-आवाज़ मत छोड़िए
आइए
हम मिल कर उन बेअवाज़ स्वरों को
पहचानने का कोई तरीका ढूँढें
और उन्हें आवाज़ देने की कोशिश करें
वे हमारे द्वारा हीं विस्थापित किए गये स्वर हैं.