एक तो अपनी ...
और दूसरी तुम्हारी...
दोहरी तनहाई में जीता हूँ रोज
शायद तुम भी जीती होगी कुछ इस तरह ही
रोज शाम
और दूसरी तुम्हारी...
दोहरी तनहाई में जीता हूँ रोज
शायद तुम भी जीती होगी कुछ इस तरह ही
रोज शाम
वे दोनो हीं मिल जाती हैं
समंदर के साहिल के समानांतर बैठी हुई
तुम्हें भी दिखाई दे हीं जाती होगी कभी वे
तुम भी साहिल पे बैठती हीं होगी
समंदर के साहिल के समानांतर बैठी हुई
तुम्हें भी दिखाई दे हीं जाती होगी कभी वे
तुम भी साहिल पे बैठती हीं होगी
तन्हाई हमें साहिल पे हीं तो ली जाती है
वे रहती हैं सूरज डूबने तक वहीं
मैं लौट आता हूँ उन्हें वही छोड कर
तुम्हें भी लौटना होता होगा
मैं लौट आता हूँ उन्हें वही छोड कर
तुम्हें भी लौटना होता होगा
अंधेरा होने से पहले
अरसे से हम जी रहे हैं दोहरी तन्हाइयां
अरसे से हमारा जीना बंद है
अरसे से हम जी रहे हैं दोहरी तन्हाइयां
अरसे से हमारा जीना बंद है