मैं अक्सर सोंचता हूँ
अपनी पीठ को
तुमसे जोड़ कर
खास कर
पीठ के उस हिस्से को
जहाँ मेरी बाजुएँ
पहुँच नही पाती
मैं अक्सर सोंचता हूँ
कि सर्दियों के
एक इतवार को
छत पे मैं लेटा हूँ
और तुम
पीठ पे
तेल मल रही हो
या फिर
कभी नहाते समय
आ गयी हो बिना बुलाये
पीठ पे साबुन लगाने
या मैल निकालने के
डांट रही हो कि
मैं तो ठीक से नहा भी नही सकता
मैंअक्सर सोंचता हूँ
अपनी पीठ को
तुमसे जोड़ कर
कितना अच्छा हो
गर तुम भी
देख सको
मुझे कभी
अपनी पीठ से जोड़ कर
2 comments:
बहुत कोमल भाव!! सुन्दर और नाजुक अभिव्यक्ति.
sundar kalpana....!
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