Thursday, January 22, 2009

अपनी पीठ से जोड़ कर

मैं अक्सर सोंचता हूँ
अपनी पीठ को
तुमसे जोड़ कर

खास कर
पीठ के उस हिस्से को
जहाँ मेरी बाजुएँ
पहुँच नही पाती

मैं अक्सर सोंचता हूँ
कि सर्दियों के
एक इतवार को
छत पे मैं लेटा हूँ
और तुम
पीठ पे
तेल मल रही हो
या फिर
कभी नहाते समय
आ गयी हो बिना बुलाये
पीठ पे साबुन लगाने
या मैल निकालने के
डांट रही हो कि
मैं तो ठीक से नहा भी नही सकता

मैंअक्सर सोंचता हूँ
अपनी पीठ को
तुमसे जोड़ कर

कितना अच्छा हो
गर तुम भी
देख सको
मुझे कभी
अपनी पीठ से जोड़ कर

2 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत कोमल भाव!! सुन्दर और नाजुक अभिव्यक्ति.

कंचन सिंह चौहान said...

sundar kalpana....!