Sunday, January 25, 2009

वही मृत्यु

हरेक क्षण को
धकिया कर
काबिज हो जाता है
उसकी जगह पर
एक दूसरा क्षण

क्षण भर के लिए
हैं कितनी लडाईयाँ
है कितना द्वेष
कितने झूठ
कितनी घोषनाएं , गर्जनाएं
और फिर अंत में
वही मृत्यु

2 comments:

अनिल कान्त said...

क्या बात है भाई ......तुम में बात है ...लिखते रहें

अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

कंचन सिंह चौहान said...

bahut gaharii baat