Tuesday, January 27, 2009

अस्तित्व


वे लम्बी नींद में थे
और एक लंबे से ख्वाब को
हकीकत समझते हुए
ख्वाब के भीतर हीं
जिंदगी की जरूरतें जुटा रहे थे

नींद कितनी ही लम्बी क्यूँ ना हो
टूटती हीं है
और
सारे ख्वाब तभी तक संच लगते हैं
जब तक कि नींद नही टूटती.

1 comment:

हरकीरत ' हीर' said...

सारे ख्वाब तभी तक संच लगते हैं
जब तक कि नींद नही टूटती.

Waah...Waah...! her roz ek kavita...?
bhot khoob....!