Thursday, January 29, 2009

आदमी के पानी में कोई संक्रमण हो गया है!

(After watching a long column of second marriage in matromonial of a newspaper)

दिल और दिमाग
दोनों भिड़ा कर बंद कर दिए
और सांकल चढा ली अन्दर से

अब न सुनने को बचा था कुछ
और ना हीं आजमाने को
हर तरफ़ से दीवार ढह कर
बह गई थी पानी में

देर तक बैठी रही,
यादों और यादयास्त दोनों ही को
अलग करती रही
खींच-खींच कर.
एहसास उतार-उतार कर
रखती रही
कमरे के कोने में पड़ी पुरानी स्टूल पे

और अंत में जो
नही उतरा खुरचने से भी तो
धो दिए उफनती आंखों की धार से,
सब मिटा दिया , कुछ भी बाकी नही रखा

फ़िर
तन्हाई की मोटी तहें
लपेट ली जिंदगी पर
और लेट गई

अब लेटी है उखड़ी हुई ...

उखडे हुए लोगों की तादाद बढती जा रही है
आदमी के पानी में कोई संक्रमण हो गया है !

1 comment:

संध्या आर्य said...

फ़िर
तन्हाई की मोटी तहें
लपेट ली जिंदगी पर
और लेट गई
ye panktiyan vastwikta ke bahut hi karib hai.samaj ke kuch riti-riwaj,mulya,standard aadi hote hai sath hi samaj me byapt kuch samwedanhin mansiktayen our jad vichar bhi hoti hai jisase samaj chalti hai.par phark sirf etana hai ki samajik riti-riwaj to dikhate hai our dikhaye bhi jate hai par samwedanhinta our jadta dono hi nahi dikhate hai our na hi dikhaye jate hai.samwedanhinta our jadta ke shikar byakti hi tanhaee me lipta hua ensan me tabdil ho jata hai.mera yah manana hai