Saturday, May 14, 2011

मेरे किनारे मेकोंग नदी लेटी है

मेरे किनारे पे मेकोंग नदी लेटती है
यहाँ सूरज को
सिर्फ दो कदम चलकर डूबना होता है

रात भर सूरज डूबा रह कर
भले हीँ लौटता हो ठंढा होकर सुबह-सुबह
नदी सूखती जाती है थोड़ी-थोड़ी रोज

मेरे किनारे मेकोंग नदी लेटी है
मैं देर तक बैठता हूँ उसके किनारे
क्या पता कल वो हो न हो

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Wednesday, May 11, 2011

एक दिन अचानक...

हमें दूर होना था

हमने एक दूसरे में रखीं
अपनी-अपनी चीजें उठायीं
और खाली हो गए

कितना वक़्त
लगाया था हमने
भरने में अपने रिश्ते को,
एक-एक कर जलाई थीं
जिंदगी की लपटें

और एक दिन जलती लौ पे
हाथ रख कर
बुझा दिया उसको
हाथों से अपने

हमारे हाथ जले नहीं
हमारी नसें ढीली नहीं हुईं

हम कितने बेवफा थे
हमें कुछ मालूम नहीं था

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Thursday, May 5, 2011

वे सब लोग अब मर नहीं पाएंगे

बहुत से लोग
जो प्यार में कभी मर गए थे
और अब प्यार में जीने के लिए फिर पैदा हुए थे
उनकी मुश्किल थी कि
उन्हें लोग नहीं मिलते थे
जिन पे प्यार में वे दुबारा मर सकें
और सुकून हो

अकूत प्रेम अब कहीं नहीं दीखता था
फिल्मों में भी नहीं
जहाँ सिर्फ अभिनय से भी काम चलाया जा सकता है

कविता काफी देर तक
माथे पे हाथ रखे सोंचती थी
कि कुछ लिखे
कि वे सब लोग प्रेम पढ़ कर सुकून से मर सकें
जो मर के मरना चाहते थे

पर शब्दों का कहना था
कि वे अब उस तरह नहीं लिखे जा सकेंगे
जिस तरह पढ़े जाने की जरूरत है
इसलिए शायद
वे सब लोग अब मर नहीं पाएंगे

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