हमें दूर होना था
हमने एक दूसरे में रखीं
अपनी-अपनी चीजें उठायीं
और खाली हो गए
कितना वक़्त
लगाया था हमने
भरने में अपने रिश्ते को,
एक-एक कर जलाई थीं
जिंदगी की लपटें
और एक दिन जलती लौ पे
हाथ रख कर
बुझा दिया उसको
हाथों से अपने
हमारे हाथ जले नहीं
हमारी नसें ढीली नहीं हुईं
हम कितने बेवफा थे
हमें कुछ मालूम नहीं था
___________
18 comments:
kavita pasand aayee
बहुत गहरी सोच लिए कविता .
बहुत कोमल अहसास...सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना..
एक बार फिर दिल का दर्द उतार दिया लफ़्ज़ो में……………बेहतरीन्।
Dard aur sachhayee,donon se labrez rachana!
pahli panktiyaan hi kamaal ki hai...sundar...
bahut sundar....!
Aabhaar!
"कितना वक़्त
लगाया था हमने
भरने में अपने रिश्ते को
और एक दिन जलती लौ पे
हाथ रख कर
बुझा दिया उसको.."
रिश्ते जब बुझते हैं
तो ऐसे ही बुझते हैं...
संवेदना से भरी मार्मिक रचना.....
बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!
वाह...बेहतरीन भावाभिव्यक्ति......आभार !!
हम रिश्तों को जला कर जीवन में गर्माहट लाते हैं और अपना अहित कर जाते हैं।
कूड़े को रखके उसे पूजने का फायदा भी क्या है ओमजी !सम्बन्धों की डोर टूटती है ,लोग मिलतें हैं बिछुड़तें हैं .जीवन का दर्शन छोड़ जातीं हैं ये घटनाएं ,उसी का अन्वेषण करो ।
नै सृष्टि रचो ,घरोंदा बनाओ -देखते नहीं है आप पक्षी विपरीत जलवायु होने से पहले ही उड़ जातें हैं ,फिर आतें हैं लौट के नए घरोंदें ,घोंसले बनातें हैं ।
पेड़ तो खुद अपनी खाद ही बन जातें हैं हम अपने अन्दर से हौसला नहीं जुटा सकते क्या ?जीवन को संसिक्त नहीं कर सकते क्या ?उसी ऊर्जा से ?
सुन्दर रचना ,रचना फलक के लिए बधाई ।
वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा ).
हमें दूर होना था
हमने एक दूसरे में रखीं
अपनी-अपनी चीजें उठायीं
और खाली हो गए
khaali hone me kahan lagta hai samay ... bahut hi gahre bhaw
वफा और बेवफा होना शायद सापेक्ष है. कोई अकारण तो भरकर फिर रिश्तों को खाली नहीं करता है.
..........?
कितना वक़्त
लगाया था हमने
भरने में अपने रिश्ते को,
एक-एक कर जलाई थीं
जिंदगी की लपटें
मार्मिक अभिव्यक्ति
dard bhari rachna.....
मुझे लगा ये मैं हूँ. हमेशा लगता है आपकी कविताओं में अपना होना.
very good nazm...hamesha jaisi.
Post a Comment