Wednesday, May 11, 2011

एक दिन अचानक...

हमें दूर होना था

हमने एक दूसरे में रखीं
अपनी-अपनी चीजें उठायीं
और खाली हो गए

कितना वक़्त
लगाया था हमने
भरने में अपने रिश्ते को,
एक-एक कर जलाई थीं
जिंदगी की लपटें

और एक दिन जलती लौ पे
हाथ रख कर
बुझा दिया उसको
हाथों से अपने

हमारे हाथ जले नहीं
हमारी नसें ढीली नहीं हुईं

हम कितने बेवफा थे
हमें कुछ मालूम नहीं था

___________

18 comments:

रचना said...

kavita pasand aayee

रेखा श्रीवास्तव said...

बहुत गहरी सोच लिए कविता .

Kailash Sharma said...

बहुत कोमल अहसास...सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना..

vandana gupta said...

एक बार फिर दिल का दर्द उतार दिया लफ़्ज़ो में……………बेहतरीन्।

kshama said...

Dard aur sachhayee,donon se labrez rachana!

Parul kanani said...

pahli panktiyaan hi kamaal ki hai...sundar...

nutan vyas said...

bahut sundar....!
Aabhaar!

***Punam*** said...

"कितना वक़्त
लगाया था हमने
भरने में अपने रिश्ते को
और एक दिन जलती लौ पे
हाथ रख कर
बुझा दिया उसको.."



रिश्ते जब बुझते हैं
तो ऐसे ही बुझते हैं...

संजय भास्‍कर said...

संवेदना से भरी मार्मिक रचना.....
बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!

संजय भास्‍कर said...

वाह...बेहतरीन भावाभिव्यक्ति......आभार !!

प्रवीण पाण्डेय said...

हम रिश्तों को जला कर जीवन में गर्माहट लाते हैं और अपना अहित कर जाते हैं।

virendra sharma said...

कूड़े को रखके उसे पूजने का फायदा भी क्या है ओमजी !सम्बन्धों की डोर टूटती है ,लोग मिलतें हैं बिछुड़तें हैं .जीवन का दर्शन छोड़ जातीं हैं ये घटनाएं ,उसी का अन्वेषण करो ।
नै सृष्टि रचो ,घरोंदा बनाओ -देखते नहीं है आप पक्षी विपरीत जलवायु होने से पहले ही उड़ जातें हैं ,फिर आतें हैं लौट के नए घरोंदें ,घोंसले बनातें हैं ।
पेड़ तो खुद अपनी खाद ही बन जातें हैं हम अपने अन्दर से हौसला नहीं जुटा सकते क्या ?जीवन को संसिक्त नहीं कर सकते क्या ?उसी ऊर्जा से ?
सुन्दर रचना ,रचना फलक के लिए बधाई ।
वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा ).

रश्मि प्रभा... said...

हमें दूर होना था

हमने एक दूसरे में रखीं
अपनी-अपनी चीजें उठायीं
और खाली हो गए
khaali hone me kahan lagta hai samay ... bahut hi gahre bhaw

M VERMA said...

वफा और बेवफा होना शायद सापेक्ष है. कोई अकारण तो भरकर फिर रिश्तों को खाली नहीं करता है.
..........?

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कितना वक़्त
लगाया था हमने
भरने में अपने रिश्ते को,
एक-एक कर जलाई थीं
जिंदगी की लपटें

मार्मिक अभिव्यक्ति

mridula pradhan said...

dard bhari rachna.....

mukti said...

मुझे लगा ये मैं हूँ. हमेशा लगता है आपकी कविताओं में अपना होना.

pallavi trivedi said...

very good nazm...hamesha jaisi.