Saturday, September 24, 2011

वक़्त रिअर ग्लास की तरह है

वक़्त मोड़ देता है
कभी कान उमेठकर हौले से
कभी बाहें मदोड़ कर झटके से
और कभी इस तरह कि
बस चौंकने भर का मौका होता है

वो मोड़ता है तो
मुड़े बिना मैं नहीं और वो भी नहीं
कोई और हो तो हो
इसका पता नहीं

जब आग लगी थी
और जब जलने का मजा था
हमारा मोम पिघल कर  मिलने लगा था
वक़्त ने हमें नाक से पकड़ा
और मोड़ कर हमारी पीठ एक दूसरे की तरफ कर दी

हम किधर गए
कौन से पार किये रास्ते
वो सिर्फ वक्त को मालूम होगा
मुझे बस ये मालूम है कि
वो पिघला मोम जमा नहीं

आँखों के पानी में सब धुंधले हुए
और यूँ लगता है कि
सब न जाने कितने कोस दूर है अब

पर ऐसा सिर्फ लगता है
वास्तव में है नहीं
दरअसल वक़्त रिअर ग्लास की तरह है
चीजें ज्यादा दूर दिखाई पड़ती हैं

21 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

यथार्थ को कहती अच्छी रचना ...
हम किधर गए
कौन से पार किये रास्ते
वो सिर्फ वक्त को मालूम होगा
मुझे बस ये मालूम है कि
वो पिघला मोम जमा नहीं

बहुत गहन ..

प्रवीण पाण्डेय said...

अधिक देख कर अधिक सोचने को विवश करता समय।

Ravi Shankar said...

हम किधर गए
कौन से पार किये रास्ते
वो सिर्फ वक्त को मालूम होगा
मुझे बस ये मालूम है कि
वो पिघला मोम जमा नहीं …

दरअसल वक़्त रिअर ग्लास की तरह है
चीजें ज्यादा दूर दिखाई पड़ती हैं…

बेहद खूबसूरत और बारीक नज़्म ! दाद हाज़िर है !

अजय कुमार said...

वक्त को कौन पढ़ सका है । अच्छी रचना वक्त पर

डॉ .अनुराग said...

शानदार !!!!!!!

mukti said...

खूबसूरत !

***Punam*** said...

"आँखों के पानी में सब धुंधले हुए
और यूँ लगता है कि
सब न जाने कितने कोस दूर है अब

पर ऐसा सिर्फ लगता है
वास्तव में है नहीं
दरअसल वक़्त रिअर ग्लास की तरह है
चीजें ज्यादा दूर दिखाई पड़ती हैं "

और कभी-कभी बहुत पास.......
शायद यह बात भूल रहे हैं आप....!!

vandana gupta said...

बेहद गहन अभिव्यक्ति।

sonal said...

बेहद सटीक ... सच में वक़्त के हाँथ खिलोने जैसे ही है ना हम ... पलट के देखो तो मीठे पल ,अपने रिश्ते सब कितने दूर नज़र आते है

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

kya baat hai....this is very beautiful...

Unknown said...

Namskar Om ji


aap ki kavitayein sab ki sab favorite hein meri ...


Sahil

Unknown said...

Namskar Om ji


aap ki kavitayein sab ki sab favorite hein meri ...


Sahil

नवनीत नीरव said...

kafi kuchh kahti hai aapki rachna....afsos to sirf is baat ka hai ki aapse mukhatibh na ho saka jaipur mein rahkar bhi.

Navnit

दर्पण साह said...

Object in the 'time' are nearer then they appear. :-(

अरुण चन्द्र रॉय said...

ओम भाई... आपसे संक्षिप्त मुलाकात हुई थी परिकल्पना पुरस्कार समारोह में दिल्ली में.... आप कहीं कहीं से होते हुए आपके ब्लॉग तक पंहुचा हूं... आपकी वर्तमान कविता वाकई ज़िदगी में समय के महत्त्व और उसके प्रभाव को रेखांकित कर रही है... अक्सर रियर ग्लास में देखते हुए ऐसे ख्याल आते हैं.. कविता बहुत गहरी है और संवेदित कर रही है... सुन्दर कविता...

Meenu Khare said...

aapko aakashvani gorakhpur ki taraf se ek kavi sammelan me bulana chahti hoon.kripya ph no aur address bata dein.

Meenu Khare said...

aapko aakashvani gorakhpur ki taraf se ek kavi sammelan me bulana chahti hoon.kripya ph no aur address bata dein.

Meenu Khare said...

28 nov ko kavi goshthi hai.27 ko pahuchna hai.availability confirm karen.

Rajnandan said...

शाबाश !ओमप्रकाश, बहुत अच्छा।

SANDEEP PANWAR said...

अच्छी लगी है।

M VERMA said...

बहुत खूब ..
दरअसल वक़्त रिअर ग्लास की तरह है
चीजें ज्यादा दूर दिखाई पड़ती हैं
और फिर शायद नज़रों से ओझल भी हो जाती हैं.