वक़्त मोड़ देता है
कभी कान उमेठकर हौले से
कभी बाहें मदोड़ कर झटके से
और कभी इस तरह कि
बस चौंकने भर का मौका होता है
वो मोड़ता है तो
मुड़े बिना मैं नहीं और वो भी नहीं
कोई और हो तो हो
इसका पता नहीं
जब आग लगी थी
और जब जलने का मजा था
हमारा मोम पिघल कर मिलने लगा था
वक़्त ने हमें नाक से पकड़ा
और मोड़ कर हमारी पीठ एक दूसरे की तरफ कर दी
हम किधर गए
कौन से पार किये रास्ते
वो सिर्फ वक्त को मालूम होगा
मुझे बस ये मालूम है कि
वो पिघला मोम जमा नहीं
आँखों के पानी में सब धुंधले हुए
और यूँ लगता है कि
सब न जाने कितने कोस दूर है अब
पर ऐसा सिर्फ लगता है
वास्तव में है नहीं
दरअसल वक़्त रिअर ग्लास की तरह है
चीजें ज्यादा दूर दिखाई पड़ती हैं
कभी कान उमेठकर हौले से
कभी बाहें मदोड़ कर झटके से
और कभी इस तरह कि
बस चौंकने भर का मौका होता है
वो मोड़ता है तो
मुड़े बिना मैं नहीं और वो भी नहीं
कोई और हो तो हो
इसका पता नहीं
जब आग लगी थी
और जब जलने का मजा था
हमारा मोम पिघल कर मिलने लगा था
वक़्त ने हमें नाक से पकड़ा
और मोड़ कर हमारी पीठ एक दूसरे की तरफ कर दी
हम किधर गए
कौन से पार किये रास्ते
वो सिर्फ वक्त को मालूम होगा
मुझे बस ये मालूम है कि
वो पिघला मोम जमा नहीं
आँखों के पानी में सब धुंधले हुए
और यूँ लगता है कि
सब न जाने कितने कोस दूर है अब
पर ऐसा सिर्फ लगता है
वास्तव में है नहीं
दरअसल वक़्त रिअर ग्लास की तरह है
चीजें ज्यादा दूर दिखाई पड़ती हैं
21 comments:
यथार्थ को कहती अच्छी रचना ...
हम किधर गए
कौन से पार किये रास्ते
वो सिर्फ वक्त को मालूम होगा
मुझे बस ये मालूम है कि
वो पिघला मोम जमा नहीं
बहुत गहन ..
अधिक देख कर अधिक सोचने को विवश करता समय।
हम किधर गए
कौन से पार किये रास्ते
वो सिर्फ वक्त को मालूम होगा
मुझे बस ये मालूम है कि
वो पिघला मोम जमा नहीं …
दरअसल वक़्त रिअर ग्लास की तरह है
चीजें ज्यादा दूर दिखाई पड़ती हैं…
बेहद खूबसूरत और बारीक नज़्म ! दाद हाज़िर है !
वक्त को कौन पढ़ सका है । अच्छी रचना वक्त पर
शानदार !!!!!!!
खूबसूरत !
"आँखों के पानी में सब धुंधले हुए
और यूँ लगता है कि
सब न जाने कितने कोस दूर है अब
पर ऐसा सिर्फ लगता है
वास्तव में है नहीं
दरअसल वक़्त रिअर ग्लास की तरह है
चीजें ज्यादा दूर दिखाई पड़ती हैं "
और कभी-कभी बहुत पास.......
शायद यह बात भूल रहे हैं आप....!!
बेहद गहन अभिव्यक्ति।
बेहद सटीक ... सच में वक़्त के हाँथ खिलोने जैसे ही है ना हम ... पलट के देखो तो मीठे पल ,अपने रिश्ते सब कितने दूर नज़र आते है
kya baat hai....this is very beautiful...
Namskar Om ji
aap ki kavitayein sab ki sab favorite hein meri ...
Sahil
Namskar Om ji
aap ki kavitayein sab ki sab favorite hein meri ...
Sahil
kafi kuchh kahti hai aapki rachna....afsos to sirf is baat ka hai ki aapse mukhatibh na ho saka jaipur mein rahkar bhi.
Navnit
Object in the 'time' are nearer then they appear. :-(
ओम भाई... आपसे संक्षिप्त मुलाकात हुई थी परिकल्पना पुरस्कार समारोह में दिल्ली में.... आप कहीं कहीं से होते हुए आपके ब्लॉग तक पंहुचा हूं... आपकी वर्तमान कविता वाकई ज़िदगी में समय के महत्त्व और उसके प्रभाव को रेखांकित कर रही है... अक्सर रियर ग्लास में देखते हुए ऐसे ख्याल आते हैं.. कविता बहुत गहरी है और संवेदित कर रही है... सुन्दर कविता...
aapko aakashvani gorakhpur ki taraf se ek kavi sammelan me bulana chahti hoon.kripya ph no aur address bata dein.
aapko aakashvani gorakhpur ki taraf se ek kavi sammelan me bulana chahti hoon.kripya ph no aur address bata dein.
28 nov ko kavi goshthi hai.27 ko pahuchna hai.availability confirm karen.
शाबाश !ओमप्रकाश, बहुत अच्छा।
अच्छी लगी है।
बहुत खूब ..
दरअसल वक़्त रिअर ग्लास की तरह है
चीजें ज्यादा दूर दिखाई पड़ती हैं
और फिर शायद नज़रों से ओझल भी हो जाती हैं.
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