Thursday, May 13, 2021

मरे हुए चुपचाप घर लौट कर!

हमने कुछ लाशों को गिना
और वे ढाई लाख हुए
और उससे कई गुना लाशों को हमने नहीं गिना
या फिर
उन्हें गिनती की दायरे के बाहर धकेल दिया
उनकी संख्या हमें नहीं मालूम
वे कितने हुए

भेदभाव हमारे खून में है 
कहने के लिए हमारे खून का रंग लाल है

यह हमारे चलन में हैं
कि कुछ लाशों को हम नहीं गिनते 
बस दबाते जाते हैं मिट्टी के भीतर
या बहाते जाते हैं पानी में
और कभी कुछ जिंदो को भी
अपनी जरूरत के अनुसार

आंकड़ों में देश अच्छा दिखना चाहिए
और इसके लिए हम कुछ भी खराब कर सकते हैं 

सरकार कहती है कि लोग नहीं समझते 
कोर्ट कहता है सरकार नहीं समझती
व्यापार हिंसक रूप में है हर जगह
अस्पताल अंदर ही अंदर चुपचाप मार देता है
मर जाने वाले को भी 
और बच जाने वाले को भी
और व्यवस्था चुपचाप मर जाने देती है

और इस दरमियान
हम चुपचाप अपनी अपनी लाशें उठाए
लौटते हैं घर
चुपचाप... क्योंकि हम समझते हैं
कि खिलाफ में बोलने का यह समय नहीं है!






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