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Tuesday, July 14, 2009

मैं शुतुरमुर्ग होना चाहता हूँ !

यह मेरा हीं दुःख है
जो मुझे रुलाता है

बाहरी दुनिया के सारे दुःख
बस एक अतिरिक्त कारण हैं

पर सोंचता हूँ की
ये जो बेबात का इतना दुःख है
इसका उदगम कहाँ है
या मैं दुःख खींचने वाला चुम्बक तो नहीं

मैं भी
बहुत सारे अन्य लोगो में
शामिल हो जाना चाहता हूँ
जो हास्य फिल्में देखते हैं
बिना बात के हंसते हैं
और हंसते हुए घर लौट आते हैं
शाम को बैड्मिन्टन खेलते हैं
और राजनीति पे चर्चा करते हैं

मैं शुतुरमुर्ग होना चाहता हूँ !