यह मेरा हीं दुःख है
जो मुझे रुलाता है
बाहरी दुनिया के सारे दुःख
बस एक अतिरिक्त कारण हैं
पर सोंचता हूँ की
ये जो बेबात का इतना दुःख है
इसका उदगम कहाँ है
या मैं दुःख खींचने वाला चुम्बक तो नहीं
मैं भी
बहुत सारे अन्य लोगो में
शामिल हो जाना चाहता हूँ
जो हास्य फिल्में देखते हैं
बिना बात के हंसते हैं
और हंसते हुए घर लौट आते हैं
शाम को बैड्मिन्टन खेलते हैं
और राजनीति पे चर्चा करते हैं
मैं शुतुरमुर्ग होना चाहता हूँ !
जो मुझे रुलाता है
बाहरी दुनिया के सारे दुःख
बस एक अतिरिक्त कारण हैं
पर सोंचता हूँ की
ये जो बेबात का इतना दुःख है
इसका उदगम कहाँ है
या मैं दुःख खींचने वाला चुम्बक तो नहीं
मैं भी
बहुत सारे अन्य लोगो में
शामिल हो जाना चाहता हूँ
जो हास्य फिल्में देखते हैं
बिना बात के हंसते हैं
और हंसते हुए घर लौट आते हैं
शाम को बैड्मिन्टन खेलते हैं
और राजनीति पे चर्चा करते हैं
मैं शुतुरमुर्ग होना चाहता हूँ !
24 comments:
गजब का ज़हीन था,
हँसना बवाल था , जीना मुहाल था
देवता बना ना चोर...
कम्बख़्त जैसे आया था वैसे ही चला गया
... टूटी सी नज़्म है निदा फ़ाज़ली साब की
shaswat
waah gazab ki soch hai kavi ki,jeevan mein sab kuch karna aur shaturmurg se tulana,bahut hi bha gayi kavita.badhai.
यह मेरा हीं दुःख है
जो मुझे रुलाता है
बहुत ही सही लिखा है आपने ।
कविता बहुत अगल अंदाज़ में है
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गुलाबी कोंपलें · चाँद, बादल और शाम
dard se kitna bhi chhup ke rahiye...apko apki raftar se pahchan lenge...aisa hi hai dard ka rishta...hmesha ki tarh lajwab kavita.....
'यह मेरा हीं दुःख है
जो मुझे रुलाता है'
-सुख और दुःख हमारी मानसिक स्थिति ही है और इस मानसिक स्थिति का निर्माण बहुत कुछ हमारे विवेक पर निर्भर है.
मेरे हँसने पर जलती है दुनिया
इसलिए अब अपने गमो पर मुस्कुराना सीख लिया ...
गमो को छुपाकर रखते हैं जेबों मे
और मुस्कुराहट को होंठों से चिपकाना सीख लिया ....
हक़ीकत की ज़मीन से उतरी कविता ..
soch taareef ke qabil hai bahut achcha
ये जो बेबात का इतना दुःख है
इसका उदगम कहाँ है
बस इस दुःख को talaash करना ही तो जीवन है.............
और हम आप सब jeena chaahte है...........
सच much shaturmurg बन कर jeena aasaan होगा .........
लाजवाब रचना है
लाजवाब.........
VERY TRUE.....!!
इसका उदगम कहाँ है
या मैं दुःख खींचने वाला चुम्बक तो नहीं
दु:ख के उद्गम को तलाशना किसी नदी के स्रोत को तलाशने से कम तो नही
बहुत सुन्दर
पर सोंचता हूँ की
ये जो बेबात का इतना दुःख है
इसका उदगम कहाँ है
या मैं दुःख खींचने वाला चुम्बक तो नहीं
......या आपको किसी ने बना तो नही दिया है न?अगर ऐसी बात है तो आप उस इंसान से दूर अवश्य रहे ताकि आप अपने दुखो से दूर रह पायेंगे और जीवन को एक सही आयाम दे पायेंगे ....आपकी सोच बहुत ही सुन्दर है ......भगवान करे आप ऐसा बन जाये ....आमीन
पर सोंचता हूँ की
ये जो बेबात का इतना दुःख है
इसका उदगम कहाँ है
या मैं दुःख खींचने वाला चुम्बक तो नहीं
यही तो संवेदनशील प्राणी होता है बहुत गहरी और सुन्दर रचना है आभार्
kYA BAAT HAI BHAI, AAPKI SOCH KA JAWAAB NAHEEN.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत गहरी और सुन्दर रचना है...
shukriya..
सागर जी की बात में दम है !
बहुत ही मर्मस्पशी कवितायें और सभी एक से बढकर एक।सारी ही भीतर तक उतर गई, एक तन्हा सा मासूम साथी बनकर और गहरे अपनेपन में भर लिया हमको।
बहुत बहुत शुभकामनायें
प्रदीप जी
एक नई साहित्यिक पहल के रूप में इन्दौर से प्रकाशित हो रही पत्रिका "गुंजन" के प्रवेशांक को ब्लॉग पर लाया जा रहा है। यह पत्रिका प्रिंट माध्यम में प्रकाशित हो अंतरजाल और प्रिंट माध्यम में सेतु का कार्य करेगी।
कृपया ब्लॉग "पत्रिकागुंजन" पर आयें और पहल को प्रोत्साहित करें। और अपनी रचनायें ब्लॉग पर प्रकाशन हेतु editor.gunjan@gmail.com पर प्रेषित करें। यह उल्लेखनीय है कि ब्लॉग पर प्रकाशित स्तरीय रचनाओं को प्रिंट माध्यम में प्रकाशित पत्रिका में स्थान दिया जा सकेगा।
आपकी प्रतीक्षा में,
विनम्र,
जीतेन्द्र चौहान(संपादक)
मुकेश कुमार तिवारी ( संपादन सहयोग_ई)
बड़ी ही सुन्दर कविता लाजवाब !
मैं भी
बहुत सारे अन्य लोगो में
शामिल हो जाना चाहता हूँ
जो हास्य फिल्में देखते हैं
बिना बात के हंसते हैं
और हंसते हुए घर लौट आते हैं
शाम को बैड्मिन्टन खेलते हैं
और राजनीति पे चर्चा करते हैं
मैं शुतुरमुर्ग होना चाहता हूँ !
bahut sundar!
aap ke shabd rachana ko namskar hai
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