आज फिर बेच दिए
नींद की कतरने हमने
आज फिर बाजार की चढ़ती-उतरती दामो के साथ
बाँध दिया खुद को.
आज फिर अपने बिके देह में रहना होगा मुझे
आज फिर रूह कर्ज से होकर गुज़रेगी
नींद की कतरने हमने
आज फिर बाजार की चढ़ती-उतरती दामो के साथ
बाँध दिया खुद को.
आज फिर अपने बिके देह में रहना होगा मुझे
आज फिर रूह कर्ज से होकर गुज़रेगी
28 comments:
आज फिर बेच दिए
नींद की कतरने हमने
आज फिर बाजार की चढ़ती-उतरती दामो के साथ
बाँध दिया खुद को.सुंदर दिल की बातें ज़बान पर आने से पहले ही कविता का रूप लेती हैं। बहोत ख़ुब।
waah,
bahut badhiya kavita
आज फिर अपने बिके देह में रहना होगा मुझे
आज फिर रूह कर्ज से होकर गुज़रेगी
भावों को शब्दों में पूर्ण रूप से उतार दिया है आपने............ गहरे ज़ज्बात
आज फिर बाजार की चढ़ती-उतरती दामो के साथ
बाँध दिया खुद को.सुंदर दिल की बातें ज़बान पर
आपके ब्लोग पर आ कर हमेशा निशब्द हो जाती हूँ शायद ये मौन का खाली घर है जहाँ सामान से अधिक संवेदनायें हैं बहुत सुन्दर बधाई
फिर कहूँगा ......आप गुलज़ार के फैन मालूम होते है ......शानदार ....
सुंदर के अलवा क्या कहूँ..!!!!
क्या बात है ओम जी वाह...लाजवाब कर दिया इस बार...वाह...
नीरज
आज फिर अपने बिके देह में रहना होगा मुझे
आज फिर रूह कर्ज से होकर गुज़रेगी
great...
fantastic dear....bahut badhiya
आज फिर अपने बिके देह में रहना होगा मुझे
भावो की गहराई शब्दो से परे है
आज फिर अपने बिके देह में रहना होगा मुझे
आज फिर रूह कर्ज से होकर गुज़रेगी
गहरे भाव .....................
शायद जिन्दगी ऐसी ही होती है ...........
kya likhun...aapke shabd to meri lekhni hi churakar le gaye....
Lajawaab !! Lajawaab !!
शानदार !
आपके एहसास, आपकी सोच एक अलग सा एहसास दिलाते हैं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
ख्याल बढ़िया और बिल्कुल जुदा्……फिर भी ,तर्ज़ पर गुलज़ार याद आये--रात भर सर्द हवा चलती रही--रात भर बुझते हुए रिश्ते को तापा हमने
आह-वाह से ऊपर की रचना....बधाई.
फिर भी क्यूँ अच्छे लगते हैं ये बंधन ....
bahut badi baat kah di aapne om ji ...
कविता इतने सरल शब्दों में इतनी गूढ़ सच्चाई को सामने लाती है कि बिना प्रशंसा किये रहा नहीं जाता. आपके पास उम्र है, सीखने, समझने के लिए बहुत लम्बा समय है, इसे इस्तेमाल करें. आपसे बहुत सम्भावनाएं हैं.
bahut sunder om ji kam shabdon men anupam abhivyakti.
bahut khoob !
ek anmol nazm .
kam shabdo me bahut kuchh kah diya apne .
badhai
kitna kuch kah hai aap thore se shabdo me amazing.....
na jane kin bhavon ko jiya hoga likhte waqt......na jaane kis kis dagar se gujar gaye honge......ye rachna ahsaas karati hai aapki vedna ka...........sach maun ka khali ghar hai.
कमाल है भाई .. बिके देह में रहना .. और उन रिश्तों में तपना ... कमाल है !! ग़ज़ब !!
रूह की बेचैनी को सही शब्दों में बांधा है आपने!
बहुत सुंदर कविता लिखा है आपने! आपकी हर एक कवितायों में एक अलग सी बात होती है! दिल कि गहराई से और पूरे भाव के साथ आप हर पंक्ति को लिखते हैं! आपकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है!
Bahut achchi lagi aapki yah rachna.Badhai.
Aaj ruh qarz se hokar guzaregee...!
Mai nishabd hun..!
Post a Comment