Monday, July 6, 2009

उस रोज सिर्फ रिश्ते नहीं काटे तुमने

काट कर छोटा कर दिया तुमने
हमारे रिश्ते को

उस रोज सिर्फ रिश्ते नहीं काटे तुमने
मैं भी साथ कटा था

कटी तो तुम भी होगी हीं
आखिर
उस रिश्ते में तुम भी तो थी

पर जाने कौन सी जंजीरें थीं

कि धार रख दिए थे तुमने रिश्ते पर ???

26 comments:

डॉ. मनोज मिश्र said...

shee abhivyakti.

डिम्पल मल्होत्रा said...

kuchh to majburiya rahi hongi.yuhi koee bewafa nahi hota....

M Verma said...

सम्वेदनाओ की बेमिसाल बानगी.
झकझोर कर रख देने वाली रचना
"कटी तो तुम भी होगी हीं आखिर
उस रिश्ते में तुम भी तो थी"
वाह क्या अनुभूति है !

निर्मला कपिला said...

कटी तो तुम भी होगी हीं आखिर
उस रिश्ते में तुम भी तो थी"
बहुत सुन्दर भाव्मय है वैसे आपके लिये मेरि कल कि पोस्ट् मै एक उपहार था शायद आपने देखा नहीं देख लेाज की पोस्त के नीछे की पोस्ट पढंए

Murari Pareek said...

bemishaal rachnaa !!!

विनोद कुमार पांडेय said...

waah..

om ji ati sundar,
badhayi..

ओम आर्य said...

निर्मला जी बहुत बहुत शुक्रिया आवार्ड के लिये मै विजिट करके भी आया ...........एक बार फिर तहे दिल से शुक्रिया ..............

Vinay said...

बहुत अच्छे

---
चाँद, बादल और शाम

Prem Farukhabadi said...

उस रोज सिर्फ रिश्ते नहीं काटे
तुमने मैं भी साथ कटा था

yah baat bhavpoorn bahut achchhi lagi,OM ji.

IMAGE PHOTOGRAPHY said...

रिश्तो का ये बन्धन इतनी जल्दी नही टुटते है

Alpana Verma said...

अद्भुत!
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति है...
'कटी तो तुम भी होगी हीं आखिर'

संवेदनाओं से भरी है हर पंक्ति !
बधाई.

संध्या आर्य said...

सम्वेदनाओ से भरी पडी है आपकी कविता ............हर एक शब्द दर्द मे कराह रहा हो मानो ............हर एक पंक्ति छिन भिन्न हो रही है दर्द मे ...............पूरी कविता जैसे कटी रिश्ते से मृत्यु के करीब हो ...........
शुभकामानाये.................

Udan Tashtari said...

उस रिश्ते में तुम भी तो थी
पर जाने कौन सी जंजीरें थीं

कि धार रख दिए थे तुमने रिश्ते पर ???

-बहुत बढ़िया!!

दिगम्बर नासवा said...

कटी तो तुम भी होगी हीं आखिर
उस रिश्ते में तुम भी तो थी"

rishton को todne naajuki दर्द ही deti है ............ दोनों taraf ............ लाजवाब लिखा है

shama said...

Om..mai har baar naye alfaaz kahan se le aaoon?
Ummeed kartee hun,ki, ye anubhav apne jiya nahee...uska kewal rachname'anuakaran" yaa ye kahun, 'trasformation" kiya hai..!
Jeevan ke itne qareeb hai ye prastuti,ki,mai bas dua kar sakti hun..!

Aapki tippaneeke liye shukriya..bas yahee yadein hain...jinhen mud ke ham dekh lete hain!

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Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सुंदर...लेकिन कुछ रिश्ते इकतरफा भी होते हैं

Unknown said...

kolahal k yug me aisee kavita
badhaai ki patra hai !

Anonymous said...

उस रोज सिर्फ रिश्ते नहीं काटे तुमने मैं भी साथ कटा था.

...बेमिसाल अभिव्यक्ति...

gazalkbahane said...

ओम जी आप जो लिखते हैं हृद्‌य की भाषा में लिख्ते हैं और वह पाठक दिल में सीधे जा पैठता है
श्याम सखा श्याम

वन्दना अवस्थी दुबे said...

क्या कहूं?? शब्द नहीं हैं मेरे पास........

admin said...

शायाद, जज्बात की इंतेहा इसे ही कहते होंगे।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Razi Shahab said...

-बहुत बढ़िया!!

कंचनलता चतुर्वेदी said...

मन को छूती सुन्दर कविता...

Urmi said...

बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति के साथ और दिल की गहराई से लिखी हुई आपकी ये रचना मुझे बहुत पसंद आया! लिखते रहिये!

स्वप्न मञ्जूषा said...

पर जाने कौन सी जंजीरें थीं कि धार रख दिए थे तुमने रिश्ते पर ???
gazab ki abhivyakti..
aur kya kahun ?

Anonymous said...
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