कटी तो तुम भी होगी हीं आखिर उस रिश्ते में तुम भी तो थी" बहुत सुन्दर भाव्मय है वैसे आपके लिये मेरि कल कि पोस्ट् मै एक उपहार था शायद आपने देखा नहीं देख लेाज की पोस्त के नीछे की पोस्ट पढंए
सम्वेदनाओ से भरी पडी है आपकी कविता ............हर एक शब्द दर्द मे कराह रहा हो मानो ............हर एक पंक्ति छिन भिन्न हो रही है दर्द मे ...............पूरी कविता जैसे कटी रिश्ते से मृत्यु के करीब हो ........... शुभकामानाये.................
Om..mai har baar naye alfaaz kahan se le aaoon? Ummeed kartee hun,ki, ye anubhav apne jiya nahee...uska kewal rachname'anuakaran" yaa ye kahun, 'trasformation" kiya hai..! Jeevan ke itne qareeb hai ye prastuti,ki,mai bas dua kar sakti hun..!
Aapki tippaneeke liye shukriya..bas yahee yadein hain...jinhen mud ke ham dekh lete hain!
26 comments:
shee abhivyakti.
kuchh to majburiya rahi hongi.yuhi koee bewafa nahi hota....
सम्वेदनाओ की बेमिसाल बानगी.
झकझोर कर रख देने वाली रचना
"कटी तो तुम भी होगी हीं आखिर
उस रिश्ते में तुम भी तो थी"
वाह क्या अनुभूति है !
कटी तो तुम भी होगी हीं आखिर
उस रिश्ते में तुम भी तो थी"
बहुत सुन्दर भाव्मय है वैसे आपके लिये मेरि कल कि पोस्ट् मै एक उपहार था शायद आपने देखा नहीं देख लेाज की पोस्त के नीछे की पोस्ट पढंए
bemishaal rachnaa !!!
waah..
om ji ati sundar,
badhayi..
निर्मला जी बहुत बहुत शुक्रिया आवार्ड के लिये मै विजिट करके भी आया ...........एक बार फिर तहे दिल से शुक्रिया ..............
बहुत अच्छे
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चाँद, बादल और शाम
उस रोज सिर्फ रिश्ते नहीं काटे
तुमने मैं भी साथ कटा था
yah baat bhavpoorn bahut achchhi lagi,OM ji.
रिश्तो का ये बन्धन इतनी जल्दी नही टुटते है
अद्भुत!
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति है...
'कटी तो तुम भी होगी हीं आखिर'
संवेदनाओं से भरी है हर पंक्ति !
बधाई.
सम्वेदनाओ से भरी पडी है आपकी कविता ............हर एक शब्द दर्द मे कराह रहा हो मानो ............हर एक पंक्ति छिन भिन्न हो रही है दर्द मे ...............पूरी कविता जैसे कटी रिश्ते से मृत्यु के करीब हो ...........
शुभकामानाये.................
उस रिश्ते में तुम भी तो थी
पर जाने कौन सी जंजीरें थीं
कि धार रख दिए थे तुमने रिश्ते पर ???
-बहुत बढ़िया!!
कटी तो तुम भी होगी हीं आखिर
उस रिश्ते में तुम भी तो थी"
rishton को todne naajuki दर्द ही deti है ............ दोनों taraf ............ लाजवाब लिखा है
Om..mai har baar naye alfaaz kahan se le aaoon?
Ummeed kartee hun,ki, ye anubhav apne jiya nahee...uska kewal rachname'anuakaran" yaa ye kahun, 'trasformation" kiya hai..!
Jeevan ke itne qareeb hai ye prastuti,ki,mai bas dua kar sakti hun..!
Aapki tippaneeke liye shukriya..bas yahee yadein hain...jinhen mud ke ham dekh lete hain!
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सुंदर...लेकिन कुछ रिश्ते इकतरफा भी होते हैं
kolahal k yug me aisee kavita
badhaai ki patra hai !
उस रोज सिर्फ रिश्ते नहीं काटे तुमने मैं भी साथ कटा था.
...बेमिसाल अभिव्यक्ति...
ओम जी आप जो लिखते हैं हृद्य की भाषा में लिख्ते हैं और वह पाठक दिल में सीधे जा पैठता है
श्याम सखा श्याम
क्या कहूं?? शब्द नहीं हैं मेरे पास........
शायाद, जज्बात की इंतेहा इसे ही कहते होंगे।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
-बहुत बढ़िया!!
मन को छूती सुन्दर कविता...
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति के साथ और दिल की गहराई से लिखी हुई आपकी ये रचना मुझे बहुत पसंद आया! लिखते रहिये!
पर जाने कौन सी जंजीरें थीं कि धार रख दिए थे तुमने रिश्ते पर ???
gazab ki abhivyakti..
aur kya kahun ?
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