Friday, July 24, 2009

देखो तो दिल धडकनों से भर गया

देखो तो दिल

धडकनों से भर गया

साँसों को चुपके से

ये कौन छू कर गया


ये कौन छू गया, किस सपने ने

मेरी जबां नींद को

मेरी नींद की रुखसारों को

ये कौन लाल कर गया


बड़ी
खामोशी से तन्हाई उभरती है

फिर उस तन्हाई से तू गुजरती है

कैसे टूटी ये खामोशी

ये कौन आहट कर गया


दिल
को गुमान हुआ है

तू मेरा मेहमान हुआ है

अरे! ये ख्वाब के पाँव क्यूँ रुक गए

ये कौन अचानक से उठ कर गया

39 comments:

Vinay said...

बहुत सुन्दर
---
चाँद, बादल और शाम

Mohinder56 said...

ओम जी आपने बहुत ही सुन्दर ख्यालात का मुजाहरा किया है अपनी इस रचना की मार्फ़त..आभार

नीरज गोस्वामी said...

"ये कौन आहट कर गया...."
ओम जी हमेशा की तरह बहुत खूबसूरत रचना है आपकी...इस पंक्ति को पढ़ कर "जरा सी आहट होती है तो दिल सोचता है...कहीं ये वो तो नहीं...." गीत याद आ गया...
नीरज

डिम्पल मल्होत्रा said...

dekho to dil dhadkano se bhar gya...khoobsurat rachna....ye koun aahat kar gya....touching...

Razi Shahab said...

Bhut khoob achchi rachna badhai

सदा said...

दिल को गुमान हुआ है,
तू मेरा मेहमान हुआ है ।

vandana gupta said...

waah waah......bahut sundar.

विनोद कुमार पांडेय said...

ek baar fir bejod..

khamoshi se kisi ke mahsoos karane
ka bhav badi sahajta se darshaya aapne..
sundar badhayii

वन्दना अवस्थी दुबे said...

अतिसुन्दर...........हमेशा की तरह.

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया !!

M VERMA said...

मेरी नींद की रुखसारों को ये कौन लाल कर गया"
====
नीद के रूखसारो को लाल हो जाने दो
ख्वाबो के सुर्ख गाल हो जाने दो
====
बहुत खूब लिखा है ओम जी आपने एह्सास की यह कविता

Neeraj Kumar said...

बड़ी खामोशी से तन्हाई उभरती है फिर उस तन्हाई से तू गुजरती हैकैसे टूटी ये खामोशी ये कौन आहट कर गया

Om ji,
bahut sundar ahsas...
bahut sundar panktiyan...

Unknown said...

badi khaamoshi se tanhaai ubharti hai
fir tu us tanhaai se guzarti hai

kya iraada hai aapka?
sadi ka mahakavi banne ki thaan hi lihai kya ?

BADHAAI !
bahut bahut badhaai !

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बहुत सुंदर भाई आेम जी.

ज्योति सिंह said...

बड़ी खामोशी से तन्हाई उभरती है फिर उस तन्हाई से तू गुजरती हैकैसे टूटी ये खामोशी ये कौन आहट कर गया
bahut khoob ,aesa laga aapke shabdo ne meri jubaan kah daali .

निर्मला कपिला said...

जिन संवेदनाओं के पाँव नहीं होते वही तो हमे दूर तक ले जाती हैं ना खुद ठि्ठकती हैं ना हमे रुकने देती हैं बस उन्हीं के साथ बहे जाते हैं बहुत सुन्दर कविता है बधाई

Mumukshh Ki Rachanain said...

मौन कि ये खनकदार आवाज़, घुंगरू बज उठे.........

बधाई! बधाई!!...........

अर्चना तिवारी said...

bade khoobsoorat kwaab hain aapke....

mehek said...

दिल को गुमान हुआ है तू मेरा मेहमान हुआ है अरे! ये ख्वाब के पाँव क्यूँ रुक गए ये कौन अचानक से उठ कर गया
waah,khwab ko pachu ki upama dena bahut aas aaya,sunder ehsaas,khubsurat bhav,masha allah lalawab.

संध्या आर्य said...

एक बहुत ही सुन्दर और नाजुक गीत .......जहाँ तन्हाई भी खामोशी के आगोश मे पंख फैलाकर उडान भरती है .........
"देखो तो दिल धडकनों से भर गया साँसों को चुपके से ये कौन छू कर गया"
.....बहुत ही खुबसूरत पंक्तियाँ

Archana Chaoji said...

साँसों को चुपके से ----कौन छू कर गया---
कँपकपी सी हुई और मै ---सिहर गया---

अनिल कान्त said...

आशिकाना ....वाह

hem pandey said...

दिल को गुमान हुआ है
तू मेरा मेहमान हुआ है
- सुन्दर.

chhotigali said...

बेहतरीन और लाजवाब

दर्पण साह said...

wah om ji kamal ka likha hai aapne....

Himanshu Pandey said...

"ये ख्वाब के पाँव क्यूँ रुक गए ये कौन अचानक से उठ कर गया"

बेहतरीन अभिव्यक्ति । धन्यवाद ।

एक पुराना सा म्यूजियम said...

वाकई पढ़ते पढ़ते भी दिल धडकनों से भर ही गया

संतोष कुमार सिंह said...

जिस पत्रकार बन्धु के ब्लांग से आपने खबड़े ली हैं उनके लिए और आपके लिए भी सच जानाना जरुरी हैं मीडिया के खबड़ों पर भावूक होने की जरुरत नही हैं जो बिकता हैं वही दिखता हैं ।(भाई साहब आप पटना में काम कर रहे हो मीडिया कर्मियों की तरह आप भी खबर को मसालेदार तरीके से ही पेश किया ।सच तो यह हैं की अगर कृष्ण जैसा भाई उस भीड़ में नही रहता तो उस महिला की सरेआम बलात्कार हो जाती ।जिस सीआईएसएफ के जवान की तारीफ करते हुए आपने आज खबड़ छापी हैं उस सच को सामने लाने में इतनी देरी क्यों की। मीडिया से जुड़े हैं किसी चैनल वाले से फुटेज लेकर देख ले उस भीड़ में दर्जनों कृष्ण मिल जायेगे।)

अजित गुप्ता का कोना said...

अच्‍छी रचना है, हमें भी ख्‍वाब आने लगे। बधाई।

ओम आर्य said...

संतोष जी, 'कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना' वाली बात हो गयी लगती है.

नीलेश जी, आपने जो प्रतिक्रिया स्वरुप पंक्तियाँ लिखी हैं, वो एक कविता से कहीं ज्यादा है और कमाल है. वाकई मजा आ गया. धन्यवाद.

आप सबके लिए तहे दिल से इतना कहना चाहता हूँ की मौन का खाली घर, आप सबके प्यार से भरता जा रहा है. बहुत बहुत साधुवाद.

रचना त्रिपाठी said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
पढ़कर लगा कि कहीं आपको वो तो नहीं हो गया।

हरकीरत ' हीर' said...

हमेशा की तरह बहुत खूबसूरत रचना.....!!

दिगम्बर नासवा said...

बड़ी खामोशी से तन्हाई उभरती है
फिर उस तन्हाई से तू गुजरती है

तन्हाई और फिर उसके गुज़रने का इंतेज़ार.......... सच मच कोई आवाज़ ना दे, तन्हाई में खलल न डाले........

ये ख्वाब के पाँव क्यूँ रुक गए
ये कौन अचानक से उठ कर गया

ख्वाब में ही जीने वाले को ये एहसास हो रहा है .......... अचानक कोई ख्वाब रुक क्यूँ गया.........बहूत ही खूबसूरत उभारा है इस रचना को.............

मुकेश कुमार तिवारी said...

ओम जी,

मैं तो आपको आपकी सदाशयता के लिये सबसे पहले धन्यवाद देना चाहूँगा कि कविता किसी भी समय पोस्ट हो, आपकी नज़र वहां मौजूद रहती है। आपकी टिप्पणियाँ, साहस देती हैं कि और अच्छा करने के लिये कमर कस लेना चाहिये।

बड़ी ही खूबसूरत रचना, बिल्कुल दिल धड़कनों से भर गया, यादों का काफिला होकर गुजर गया।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

संजय सिंह said...

बहुत सुन्दर रचना. दिल के बहुत करीब लिख दिए हैं. अच्छा लगा

Science Bloggers Association said...

ओम भाई क्‍या बात है। छा गये हैं आप।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

vishnu-luvingheart said...

wah wah...bas yahi shabd hai...

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

नमस्कार ॐ जी बहुत ही सुंदर कविता है हर जगह उसकी ही अनुभूति मेरा प्रणाम स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने!