Thursday, July 30, 2009

किसी ने जोर से दे मारा है रिश्ता !

बिखरा है यकीन
वफाओं के टुकडे फैले हैं फर्श पर
किसी ने जोर से दे मारा है रिश्ता
फ़िर से दीवार पर

घर का नक्शा फ़िर से तितर-बितर है
घर फ़िर से कोहराम है

मेरे हाथो पे बहुत सारे निशान हैं अब
वैसे जो कटने से बनते हैं

टूटी वफाओं के टुकडे उठाओ तो
हाथ तो कटते हीं हैं

तोड़ने का कारोबार है उनका
और अब मैं भी उसमें शामिल हो गई हूँ.

28 comments:

डिम्पल मल्होत्रा said...

tuti wafao ke tukde utthao to hath to kat te hi hai.....sahi kaha apne....main bawafa tha esliye nazaro se gira diya...use tlash thi shayad kisi bewafa ki....

kshama said...

वाह ॥! क्या गज़ब ढाया हमेशा की तरह...!
एक ऐसे ही रिश्तोंकी अनकही दास्ताँ शुरू हुई है ,' बिखरे सितारे ' इस ब्लॉग पे ...शामिल हो जाँय इस गज़ब सफर में...देखें कहाँ,किन,किन मोडों से गुज़रता हुआ ले चलता है ये आपको...अपने पाठकों को...

सदा said...

आपकी यह रचना पढ़कर जो पहला शब्‍द मुंह से निकलता है वह है वाह! इतने गहराई युक्‍त ये शब्‍द दिल के बेहद करीब, बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति आभार्

डॉ. मनोज मिश्र said...

बिखरा है यकीन
वफाओं के टुकडे फैले हैं फर्श पर
किसी ने जोर से दे मारा है रिश्ता
फ़िर से दीवार पर............
vaah-bhut sundr.

सागर said...

अभी-अभी ''सच का सामना'' देख रहा था... एकबारगी यूँ लगा उर्वशी ने यह कविता दुनिया के लिए कही होगी... क्योंकि इस बार कविता में वाचक स्त्रीलिंग है...

चुन-चुन कर तुमने जालिम हर तीर निशाने पर मारा...
है शुक्र अभी भी जिंदा हूँ...

हाल-ए-दिल तार-तार कर रख दिया बन्धु... सिगरेट की तलब लगा दी...

Razi Shahab said...

बिखरा है यकीन
वफाओं के टुकडे फैले हैं फर्श पर
किसी ने जोर से दे मारा है रिश्ता
फ़िर से दीवार पर...
बहुत खूबसूरत रचना

रश्मि प्रभा... said...

bahut bahut bahut hi gahre bhaw aur vyathit shabd......

आनन्द वर्धन ओझा said...

बंधुवर,
आपके मौन के खाली घर में गया था, वहाँ अच्छा लगा और सुंदर कविता पढने को मिलीं : 'किसी ने जोर से दे मारा रिश्ता'--टूटी वफाओं के टुकड़े उठाओ तो...; 'कुछ कोशिशें कदम रोक लेतीं हैं'--ज़ज्बों में धूप शायद उतनी तेज़ नहीं...' ; और 'दोहरी तन्हाई में'--अरसे से हमारा जीना बंद है....
शानदार लेखन, सार्थक अभिव्यक्ति, अहसासों का बेहद दिलकश बयान !
आपके मौन के खली घर में बहुत सारे स्वर हैं !
बधाइयाँ लें !!

IMAGE PHOTOGRAPHY said...

यहाँ तो बिखरे पडॆ है रिश्ते है
कोई हो जो इन्हे जोड दे
यहाँ तो कोई अपना भी नही जो रिश्ते जोड दे ।
आभार......

निर्मला कपिला said...

बिखरा है यकीन
वफाओं के टुकडे फैले हैं फर्श पर
किसी ने जोर से दे मारा है रिश्ता
फ़िर से दीवार पर............ापकी अभिव्यक्ति हमेशा ही अलग और गहरे भाव लिये होती है बहुत सुन्दर मर्म्स्पर्शी रचना के लिये बधाई कैसे कहूँ मगर शुभकामनायें कहूँगी हाँ अभिव्यक्ति के लिये नहीं शब्द शिल्प के लिये बधाई कभी 2 ये समझ नहीं आता कि ऐसी रचना पर क्या कहा जये बधाई या शुभकामनायें कुछ टूटा है तो बधाई किस बात की ----

वन्दना अवस्थी दुबे said...

कुछ कहने लायक ही नहीं छोडते आप तो. बहुत सुन्दर.

M VERMA said...

किसी ने जोर से दे मारा है रिश्ता
फ़िर से दीवार पर
रिश्तो का बिखराव और फिर अस्तित्व के लहुलूहानगी की दास्तान ---
बहुत - बेहद - अतिसुन्दर

Unknown said...

wallah khoob jor se de maara hain

चन्दन कुमार said...

आज जब रिश्तों की अहमियत और शक्लोसूरत बदल रही है ऐसे में आपकी ये रचना सोचने पर विवश करती है

Prem Farukhabadi said...

बिखरा है यकीन
वफाओं के टुकडे फैले हैं फर्श पर
किसी ने जोर से दे मारा है रिश्ता
फ़िर से दीवार पर
bahut hi jhakjorane vaala vichar.kya kahen? atisundar!

संध्या आर्य said...

मेरे हाथो पे बहुत सारे निशान हैं अब
वैसे जो कटने से बनते हैं

टूटी वफाओं के टुकडे उठाओ तो
हाथ तो कटते हीं हैं
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Neelesh K. Jain said...

Priya Om Bhai
Apne blog par aaka comment dekha achcha laga. Aapki post ke liye kuch nazar kar raha hon:
Ek boond aakaash se girkar boli
main jis tarah bikharti hon
vaise koi bikhar nahin sakta
to maine kaha lagta hai tujhe insaani rishto ka rang nahin dikhata
jis din bikharta hai yankee kisi ka
wo phir kitna bhi sameto
magar phir samete nahin nahin simatata.

Aapki qalam mein taaqt hai...
Aaapka Neelesh

admin said...

Aapki kalpanaa adbhut hoti hai.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Mithilesh dubey said...

बिखरा है यकीन
वफाओं के टुकडे फैले हैं फर्श पर
किसी ने जोर से दे मारा है रिश्ता
फ़िर से दीवार पर

बहुत खुब, बेहतरिन रचना है भाई बधाई।

विवेक said...

बहुत खूब ओम भाई, दीवार पर रिश्ता मारने का दर्द महसूस होता है पढ़ते हुए...

vandana gupta said...

is baar to title padhte hi aisa laga jaise ..........bas kya kahun sab kuch to title ne hi kah diya............nishabd hun aaj.

Unknown said...

UMDA...........

मेरे हाथो पे बहुत सारे निशान हैं अब
वैसे जो कटने से बनते हैं

WAAH !

अनिल कान्त said...

maza aa gaya padhkar

योगेन्द्र मौदगिल said...

भावपूर्ण कविता... उद्वेलित करती हुई सार्थक रचना.. साधुवाद बंधु..

तरूश्री शर्मा said...

अंतिम पंक्तियां सच्चाई का बयान। कैसे एक सही इंसान चोट खाने पर बदलता है , चोट करने में गुरेज नहीं करता, समझ सकती हूं। अच्छी रचना, बधाई स्वीकारें।

दिगम्बर नासवा said...

रिश्तों की बिखरने से अक्सर......... न मिटने वाली खरोचें पढ़ जाती है..........बहूत भावोक, मन से निकली है आपकी बात......

विनोद कुमार पांडेय said...

बिखरा है यकीन
वफाओं के टुकडे फैले हैं फर्श पर
किसी ने जोर से दे मारा है रिश्ता
फ़िर से दीवार पर

Rishton me vafadari aaj kal bahut bada kaam ho gaya hai..

bahut badhiya dhang se dardhaya aapne..

badhayi..

Urmi said...

बहुत बढ़िया! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ की जाए कम है!