Tuesday, July 14, 2009

एक नींद की पगडंडी पर साथ-साथ

हमारे ख्वाब
मिलना चाहते थे
ताकि देख सके एक दूसरे को
पहचान सकें सूरत
एक दूसरे की

वे कुछ देर
साथ चलना चलना चाहते थे
एक ही नींद की पगडंडी पर, हाथ थामे
शायद चुप-चाप खामोशी सुनते हुए
या फ़िर बतियाते हुए

पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे.

25 comments:

डॉ .अनुराग said...

पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे.

खवाबो के पहरे जो थे......

सदा said...

पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे

बहुत ही गहराई लिये हुये दिल की बात कही आपने ।

डिम्पल मल्होत्रा said...

alag ankho se sote the...khab ek chahe na ho..ek jaise jaroor honge...

रंजन said...

बहुत खुब..

vandana gupta said...

kya khoob likha hai.........lajawaab

Razi Shahab said...

पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे.
kitna achcha likhte hain aap dil khush ho jaata hai

डॉ. मनोज मिश्र said...

हमारे ख्वाब
मिलना चाहते थे
ताकि देख सके एक दूसरे को...सुंदर भाव ,धन्यवाद.

निर्मला कपिला said...

पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे.
शायद तब हम हम नहीं रहते मै और तुम हो जाते हैं बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आभार्

निर्मला कपिला said...

पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे.
शायद तब हम हम नहीं रहते मै और तुम हो जाते हैं बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आभार्

दिगम्बर नासवा said...

वाह....... कहने को कुछ नही छोड़ते आप ओम जी.......... शब्द नही मिलते हैं......... इतनी गहरी बात इतनी आसानी से कैसे कह देते हैं......... सलाम है आपकी लेखनी को

IMAGE PHOTOGRAPHY said...

kubsurat pagdandiya jo sath nibhaye

विनोद कुमार पांडेय said...

kam shabdon me..
chand layino me
aap jo bhav piro jate hai..
usaka jawab nahi.
om ji hardik badhayi

रंजू भाटिया said...

पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे.

bahut khub ...sundar abhivykati

Udan Tashtari said...

पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे


-क्या खूब कहा!

मुकेश पाण्डेय चन्दन said...

पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे.

क्या खूब कहा ॐ जी आप ने दिल को छू लिया ! वाह

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

और क्या कहूं, वाह-वाह के सिवा!

संध्या आर्य said...

EK NIND KI PAGDANDI PAR SATH SATH AAPKI KAWITAO KE SHIRSHAK ITANE GAHARE BHAW LIYE HUYE HOTE HAI KI WAH APANE AAP ME EK KAWITA HOTI HAI .....OUR KAWITA SAMWEDANAO KA BHANDAR......JO MAN KE HAR EK KONE KO CHHOOTI HAI......BEHATARIN RACHANA

Prem Farukhabadi said...

हमारे ख्वाब
मिलना चाहते थे
ताकि देख सके एक दूसरे को
पहचान सकें सूरत
एक दूसरे की


पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे.

achchhe lage bhav.badhai!

gyaneshwaari singh said...

वे कुछ देर
साथ चलना चलना चाहते थे
एक ही नींद की पगडंडी पर, हाथ थामे
शायद चुप-चाप खामोशी सुनते हुए
या फ़िर बतियाते हुए


bahut khub likha hai apne

हरकीरत ' हीर' said...

वे कुछ देर
साथ चलना चलना चाहते थे
एक ही नींद की पगडंडी पर, हाथ थामे
शायद चुप-चाप खामोशी सुनते हुए
या फ़िर बतियाते हुए

पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे.

वाह........!!

एक बार पढ़ी, दो बार पढ़ी ....कहीं भीतर कसक सी छोड़ गयी ......!!

gazalkbahane said...

alag aankho se sona
yani khud se gafil hona
kahan se dhoond ke laate hain ye khayaalaat
kindly mail me ur postal adress i will like to send u my novel,koyee fayada nahin
shyam skha

mehek said...

bahut khub

Prem said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति --शुभकामनायें

Urmi said...

बहुत बढ़िया लगा! दिल को छू लेने वाली आपकी इस शानदार रचना के लिए बधाई! ॐ जी आप की हर एक रचना मुझे बहुत पसंद है! लिखते रहिये!

Renu goel said...

हक़ीकत का पहरा था आखों पर
दिल पर लगी थी बंदिशें

ख्वाबों की कब ये मज़ाल इन ज़ंजीरों को तोड़ पाता