वाह....... कहने को कुछ नही छोड़ते आप ओम जी.......... शब्द नही मिलते हैं......... इतनी गहरी बात इतनी आसानी से कैसे कह देते हैं......... सलाम है आपकी लेखनी को
EK NIND KI PAGDANDI PAR SATH SATH AAPKI KAWITAO KE SHIRSHAK ITANE GAHARE BHAW LIYE HUYE HOTE HAI KI WAH APANE AAP ME EK KAWITA HOTI HAI .....OUR KAWITA SAMWEDANAO KA BHANDAR......JO MAN KE HAR EK KONE KO CHHOOTI HAI......BEHATARIN RACHANA
alag aankho se sona yani khud se gafil hona kahan se dhoond ke laate hain ye khayaalaat kindly mail me ur postal adress i will like to send u my novel,koyee fayada nahin shyam skha
25 comments:
पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे.
खवाबो के पहरे जो थे......
पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे
बहुत ही गहराई लिये हुये दिल की बात कही आपने ।
alag ankho se sote the...khab ek chahe na ho..ek jaise jaroor honge...
बहुत खुब..
kya khoob likha hai.........lajawaab
पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे.
kitna achcha likhte hain aap dil khush ho jaata hai
हमारे ख्वाब
मिलना चाहते थे
ताकि देख सके एक दूसरे को...सुंदर भाव ,धन्यवाद.
पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे.
शायद तब हम हम नहीं रहते मै और तुम हो जाते हैं बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आभार्
पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे.
शायद तब हम हम नहीं रहते मै और तुम हो जाते हैं बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आभार्
वाह....... कहने को कुछ नही छोड़ते आप ओम जी.......... शब्द नही मिलते हैं......... इतनी गहरी बात इतनी आसानी से कैसे कह देते हैं......... सलाम है आपकी लेखनी को
kubsurat pagdandiya jo sath nibhaye
kam shabdon me..
chand layino me
aap jo bhav piro jate hai..
usaka jawab nahi.
om ji hardik badhayi
पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे.
bahut khub ...sundar abhivykati
पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे
-क्या खूब कहा!
पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे.
क्या खूब कहा ॐ जी आप ने दिल को छू लिया ! वाह
और क्या कहूं, वाह-वाह के सिवा!
EK NIND KI PAGDANDI PAR SATH SATH AAPKI KAWITAO KE SHIRSHAK ITANE GAHARE BHAW LIYE HUYE HOTE HAI KI WAH APANE AAP ME EK KAWITA HOTI HAI .....OUR KAWITA SAMWEDANAO KA BHANDAR......JO MAN KE HAR EK KONE KO CHHOOTI HAI......BEHATARIN RACHANA
हमारे ख्वाब
मिलना चाहते थे
ताकि देख सके एक दूसरे को
पहचान सकें सूरत
एक दूसरे की
पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे.
achchhe lage bhav.badhai!
वे कुछ देर
साथ चलना चलना चाहते थे
एक ही नींद की पगडंडी पर, हाथ थामे
शायद चुप-चाप खामोशी सुनते हुए
या फ़िर बतियाते हुए
bahut khub likha hai apne
वे कुछ देर
साथ चलना चलना चाहते थे
एक ही नींद की पगडंडी पर, हाथ थामे
शायद चुप-चाप खामोशी सुनते हुए
या फ़िर बतियाते हुए
पर हम थे
कि अलग-अलग आंखों से सोते थे.
वाह........!!
एक बार पढ़ी, दो बार पढ़ी ....कहीं भीतर कसक सी छोड़ गयी ......!!
alag aankho se sona
yani khud se gafil hona
kahan se dhoond ke laate hain ye khayaalaat
kindly mail me ur postal adress i will like to send u my novel,koyee fayada nahin
shyam skha
bahut khub
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति --शुभकामनायें
बहुत बढ़िया लगा! दिल को छू लेने वाली आपकी इस शानदार रचना के लिए बधाई! ॐ जी आप की हर एक रचना मुझे बहुत पसंद है! लिखते रहिये!
हक़ीकत का पहरा था आखों पर
दिल पर लगी थी बंदिशें
ख्वाबों की कब ये मज़ाल इन ज़ंजीरों को तोड़ पाता
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