धडकनों से भर गया
साँसों को चुपके से
ये कौन छू कर गया
ये कौन छू गया, किस सपने ने
मेरी जबां नींद को
मेरी नींद की रुखसारों को
ये कौन लाल कर गया
बड़ी खामोशी से तन्हाई उभरती है
फिर उस तन्हाई से तू गुजरती है
कैसे टूटी ये खामोशी
ये कौन आहट कर गया
दिल को गुमान हुआ है
तू मेरा मेहमान हुआ है
अरे! ये ख्वाब के पाँव क्यूँ रुक गए
ये कौन अचानक से उठ कर गया
39 comments:
बहुत सुन्दर
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चाँद, बादल और शाम
ओम जी आपने बहुत ही सुन्दर ख्यालात का मुजाहरा किया है अपनी इस रचना की मार्फ़त..आभार
"ये कौन आहट कर गया...."
ओम जी हमेशा की तरह बहुत खूबसूरत रचना है आपकी...इस पंक्ति को पढ़ कर "जरा सी आहट होती है तो दिल सोचता है...कहीं ये वो तो नहीं...." गीत याद आ गया...
नीरज
dekho to dil dhadkano se bhar gya...khoobsurat rachna....ye koun aahat kar gya....touching...
Bhut khoob achchi rachna badhai
दिल को गुमान हुआ है,
तू मेरा मेहमान हुआ है ।
waah waah......bahut sundar.
ek baar fir bejod..
khamoshi se kisi ke mahsoos karane
ka bhav badi sahajta se darshaya aapne..
sundar badhayii
अतिसुन्दर...........हमेशा की तरह.
बहुत बढिया !!
मेरी नींद की रुखसारों को ये कौन लाल कर गया"
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नीद के रूखसारो को लाल हो जाने दो
ख्वाबो के सुर्ख गाल हो जाने दो
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बहुत खूब लिखा है ओम जी आपने एह्सास की यह कविता
बड़ी खामोशी से तन्हाई उभरती है फिर उस तन्हाई से तू गुजरती हैकैसे टूटी ये खामोशी ये कौन आहट कर गया
Om ji,
bahut sundar ahsas...
bahut sundar panktiyan...
badi khaamoshi se tanhaai ubharti hai
fir tu us tanhaai se guzarti hai
kya iraada hai aapka?
sadi ka mahakavi banne ki thaan hi lihai kya ?
BADHAAI !
bahut bahut badhaai !
बहुत सुंदर भाई आेम जी.
बड़ी खामोशी से तन्हाई उभरती है फिर उस तन्हाई से तू गुजरती हैकैसे टूटी ये खामोशी ये कौन आहट कर गया
bahut khoob ,aesa laga aapke shabdo ne meri jubaan kah daali .
जिन संवेदनाओं के पाँव नहीं होते वही तो हमे दूर तक ले जाती हैं ना खुद ठि्ठकती हैं ना हमे रुकने देती हैं बस उन्हीं के साथ बहे जाते हैं बहुत सुन्दर कविता है बधाई
मौन कि ये खनकदार आवाज़, घुंगरू बज उठे.........
बधाई! बधाई!!...........
bade khoobsoorat kwaab hain aapke....
दिल को गुमान हुआ है तू मेरा मेहमान हुआ है अरे! ये ख्वाब के पाँव क्यूँ रुक गए ये कौन अचानक से उठ कर गया
waah,khwab ko pachu ki upama dena bahut aas aaya,sunder ehsaas,khubsurat bhav,masha allah lalawab.
एक बहुत ही सुन्दर और नाजुक गीत .......जहाँ तन्हाई भी खामोशी के आगोश मे पंख फैलाकर उडान भरती है .........
"देखो तो दिल धडकनों से भर गया साँसों को चुपके से ये कौन छू कर गया"
.....बहुत ही खुबसूरत पंक्तियाँ
साँसों को चुपके से ----कौन छू कर गया---
कँपकपी सी हुई और मै ---सिहर गया---
आशिकाना ....वाह
दिल को गुमान हुआ है
तू मेरा मेहमान हुआ है
- सुन्दर.
बेहतरीन और लाजवाब
wah om ji kamal ka likha hai aapne....
"ये ख्वाब के पाँव क्यूँ रुक गए ये कौन अचानक से उठ कर गया"
बेहतरीन अभिव्यक्ति । धन्यवाद ।
वाकई पढ़ते पढ़ते भी दिल धडकनों से भर ही गया
जिस पत्रकार बन्धु के ब्लांग से आपने खबड़े ली हैं उनके लिए और आपके लिए भी सच जानाना जरुरी हैं मीडिया के खबड़ों पर भावूक होने की जरुरत नही हैं जो बिकता हैं वही दिखता हैं ।(भाई साहब आप पटना में काम कर रहे हो मीडिया कर्मियों की तरह आप भी खबर को मसालेदार तरीके से ही पेश किया ।सच तो यह हैं की अगर कृष्ण जैसा भाई उस भीड़ में नही रहता तो उस महिला की सरेआम बलात्कार हो जाती ।जिस सीआईएसएफ के जवान की तारीफ करते हुए आपने आज खबड़ छापी हैं उस सच को सामने लाने में इतनी देरी क्यों की। मीडिया से जुड़े हैं किसी चैनल वाले से फुटेज लेकर देख ले उस भीड़ में दर्जनों कृष्ण मिल जायेगे।)
अच्छी रचना है, हमें भी ख्वाब आने लगे। बधाई।
संतोष जी, 'कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना' वाली बात हो गयी लगती है.
नीलेश जी, आपने जो प्रतिक्रिया स्वरुप पंक्तियाँ लिखी हैं, वो एक कविता से कहीं ज्यादा है और कमाल है. वाकई मजा आ गया. धन्यवाद.
आप सबके लिए तहे दिल से इतना कहना चाहता हूँ की मौन का खाली घर, आप सबके प्यार से भरता जा रहा है. बहुत बहुत साधुवाद.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
पढ़कर लगा कि कहीं आपको वो तो नहीं हो गया।
हमेशा की तरह बहुत खूबसूरत रचना.....!!
बड़ी खामोशी से तन्हाई उभरती है
फिर उस तन्हाई से तू गुजरती है
तन्हाई और फिर उसके गुज़रने का इंतेज़ार.......... सच मच कोई आवाज़ ना दे, तन्हाई में खलल न डाले........
ये ख्वाब के पाँव क्यूँ रुक गए
ये कौन अचानक से उठ कर गया
ख्वाब में ही जीने वाले को ये एहसास हो रहा है .......... अचानक कोई ख्वाब रुक क्यूँ गया.........बहूत ही खूबसूरत उभारा है इस रचना को.............
ओम जी,
मैं तो आपको आपकी सदाशयता के लिये सबसे पहले धन्यवाद देना चाहूँगा कि कविता किसी भी समय पोस्ट हो, आपकी नज़र वहां मौजूद रहती है। आपकी टिप्पणियाँ, साहस देती हैं कि और अच्छा करने के लिये कमर कस लेना चाहिये।
बड़ी ही खूबसूरत रचना, बिल्कुल दिल धड़कनों से भर गया, यादों का काफिला होकर गुजर गया।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बहुत सुन्दर रचना. दिल के बहुत करीब लिख दिए हैं. अच्छा लगा
ओम भाई क्या बात है। छा गये हैं आप।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
wah wah...bas yahi shabd hai...
नमस्कार ॐ जी बहुत ही सुंदर कविता है हर जगह उसकी ही अनुभूति मेरा प्रणाम स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
बहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने!
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