Thursday, July 2, 2009

अपने बिके देह में

आज फिर बेच दिए
नींद की कतरने हमने
आज फिर बाजार की चढ़ती-उतरती दामो के साथ
बाँध दिया खुद को.

आज फिर अपने बिके देह में रहना होगा मुझे
आज फिर रूह कर्ज से होकर गुज़रेगी

28 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

आज फिर बेच दिए
नींद की कतरने हमने
आज फिर बाजार की चढ़ती-उतरती दामो के साथ
बाँध दिया खुद को.सुंदर दिल की बातें ज़बान पर आने से पहले ही कविता का रूप लेती हैं। बहोत ख़ुब।

विनोद कुमार पांडेय said...

waah,
bahut badhiya kavita

दिगम्बर नासवा said...

आज फिर अपने बिके देह में रहना होगा मुझे
आज फिर रूह कर्ज से होकर गुज़रेगी

भावों को शब्दों में पूर्ण रूप से उतार दिया है आपने............ गहरे ज़ज्बात

निर्मला कपिला said...

आज फिर बाजार की चढ़ती-उतरती दामो के साथ
बाँध दिया खुद को.सुंदर दिल की बातें ज़बान पर
आपके ब्लोग पर आ कर हमेशा निशब्द हो जाती हूँ शायद ये मौन का खाली घर है जहाँ सामान से अधिक संवेदनायें हैं बहुत सुन्दर बधाई

डॉ .अनुराग said...

फिर कहूँगा ......आप गुलज़ार के फैन मालूम होते है ......शानदार ....

कंचन सिंह चौहान said...

सुंदर के अलवा क्या कहूँ..!!!!

नीरज गोस्वामी said...

क्या बात है ओम जी वाह...लाजवाब कर दिया इस बार...वाह...
नीरज

Sajal Ehsaas said...

आज फिर अपने बिके देह में रहना होगा मुझे
आज फिर रूह कर्ज से होकर गुज़रेगी
great...

Arvind Kumar said...

fantastic dear....bahut badhiya

M VERMA said...

आज फिर अपने बिके देह में रहना होगा मुझे

भावो की गहराई शब्दो से परे है

संध्या आर्य said...

आज फिर अपने बिके देह में रहना होगा मुझे
आज फिर रूह कर्ज से होकर गुज़रेगी

गहरे भाव .....................

शायद जिन्दगी ऐसी ही होती है ...........

रंजना said...

kya likhun...aapke shabd to meri lekhni hi churakar le gaye....

Lajawaab !! Lajawaab !!

Abhishek Ojha said...

शानदार !

admin said...

आपके एहसास, आपकी सोच एक अलग सा एहसास दिलाते हैं।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

पारुल "पुखराज" said...

ख्याल बढ़िया और बिल्कुल जुदा्……फिर भी ,तर्ज़ पर गुलज़ार याद आये--रात भर सर्द हवा चलती रही--रात भर बुझते हुए रिश्ते को तापा हमने

वन्दना अवस्थी दुबे said...

आह-वाह से ऊपर की रचना....बधाई.

Anonymous said...

फिर भी क्यूँ अच्छे लगते हैं ये बंधन ....

sirf harish said...

bahut badi baat kah di aapne om ji ...

सर्वत एम० said...

कविता इतने सरल शब्दों में इतनी गूढ़ सच्चाई को सामने लाती है कि बिना प्रशंसा किये रहा नहीं जाता. आपके पास उम्र है, सीखने, समझने के लिए बहुत लम्बा समय है, इसे इस्तेमाल करें. आपसे बहुत सम्भावनाएं हैं.

Yogesh Verma Swapn said...

bahut sunder om ji kam shabdon men anupam abhivyakti.

मुकेश पाण्डेय चन्दन said...

bahut khoob !
ek anmol nazm .
kam shabdo me bahut kuchh kah diya apne .
badhai

डिम्पल मल्होत्रा said...

kitna kuch kah hai aap thore se shabdo me amazing.....

vandana gupta said...

na jane kin bhavon ko jiya hoga likhte waqt......na jaane kis kis dagar se gujar gaye honge......ye rachna ahsaas karati hai aapki vedna ka...........sach maun ka khali ghar hai.

अमिताभ मीत said...

कमाल है भाई .. बिके देह में रहना .. और उन रिश्तों में तपना ... कमाल है !! ग़ज़ब !!

वाणी गीत said...

रूह की बेचैनी को सही शब्दों में बांधा है आपने!

Urmi said...

बहुत सुंदर कविता लिखा है आपने! आपकी हर एक कवितायों में एक अलग सी बात होती है! दिल कि गहराई से और पूरे भाव के साथ आप हर पंक्ति को लिखते हैं! आपकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है!

sandhyagupta said...

Bahut achchi lagi aapki yah rachna.Badhai.

shama said...

Aaj ruh qarz se hokar guzaregee...!
Mai nishabd hun..!