Showing posts with label हाथ. Show all posts
Showing posts with label हाथ. Show all posts

Wednesday, May 12, 2010

जरूरतें रात के वक़्त ज्यादा रोती थीं

लगभग हर सेकेंड
वे एक बच्चे को जन्म देती थीं
और वे खुद सात की संख्या में
हर घंटे मर जाती थीं

वे कुछ ऐसी दुनिया की औरतें थीं
जो सिर्फ आंकड़ों में विकसित होती थी

जिस शहर में
प्रधानमंत्री का निवास स्थान था
उसमें सब-सहारा से भी अधिक कुपोषित लोग थे
मगर सरकार का यह कहना था
कि ऐसा सिर्फ जनसँख्या ज्यादा होने की वजह से था

बच्चों को उनके पैदा होते हीं
हाथ में दुःख थमा दिया जाता था
दुःख जब बजता था
वे बच्चे मुस्कुराते थे
दुःख को झुनझुने की तरह काम लेने वाली
ये एक अलग दुनिया थी

बच्चों को
रात में थप्पड़ खाए बिना नींद नहीं आती थी

मार खाकर वे रोते हुए थक कर
खाली पेट सो जाते थे
ये तरीका उस दुनिया की माओं ने इजाद किया था

उनकी माओं के स्तन
कभी इतने विकसित नहीं होते थे
कि उनमें दूध आ सके
और उनके पिता
उस शहर की सड़कों पे रिक्शा चलाते थे
जहाँ प्रधानमंत्री रहते थे
और जहाँ सड़कों के किनारे
फूटपाथ बनाने पे स्थाई रोक थी
क्यूंकि सरकार मानती थी
कि पैदल चलने वाले कहीं से भी जा सकते थे
इसलिए सड़कों को सिर्फ तेज गाड़ियों के लिए छोड़ दिया जाए

हालांकि,
सरकार ये खुल कर नहीं बताती थी
कि पैदल चलने वाले लोग दरअसल
विकास की रफ़्तार में खड्डे थे
पर प्रयत्नशील थी कि
२०२० तक सारे खड्डे भर दिए जाएँ
और इसलिए आंकड़ों पे
अंधाधुंध काम हो रहा था

विकास के इस षड़यंत्र में
पानी दो रुपये प्रति घूँट बेचा जाता था
और ये कोशिश की जा रही थी
कि लोग भोजन खरीदने से पहले
दांतों की संडन रोकने के लिए टूथपेस्ट खरीदें
क्यूंकि प्रधानमंत्री पे
टूथपेस्ट की बिक्री बढाने के लिए
कई तरह के दबाब थे

तो इस तरह
विकास के इस नए युग में
चूँकि सड़कों के किनारे फूटपाथ नहीं थे
उन सभी बच्चों के पिता
अपने रिक्शों पे सोते थे
और ज्यादातर रातों को
उनके सपने नीचे गिर कर टूट जाते थे
और तब उनकी जरूरतें ज्यादा रोती थीं

***