Friday, February 6, 2009

ख्याल टूटे हुए से

दुःख पे पाँव अगर पड़ जाए
तो दुख बिदक कर काट लेते हैं ।

नज्में सब पीलीं पड़ गई हैं
जाने कब की ये किताब है।

तुम्हारे मन में उमस है, इसलिए
मुझ तक आने के रास्ते सारे चिपचिपे।

अब बस मैं एक रूह हूँ
जीने के लिए बदन उतारने पड़े।

हमने अपना एक जिस्म बनाया है
अब बस एक रूह की आरजू है।

आंखों ने छितकिनी चढा ली है
नींद -ख्वाब सब बाहर।

अभी अभी फ़िर से कोई ख्याल टूटा है
चटखने की आवाज फ़िर से आई है

3 comments:

संध्या आर्य said...

हमने अपना एक जिस्म बनाया है
अब बस एक रूह की आरजू है।
बहुत ही खुबसूरत ख्याल है.भगवान करे आपकी ख्वाहिश जल्द पूरी करे.खुशिया आपकी कदम चूमे.

पारुल "पुखराज" said...

तुम्हारे मन में उमस है, इसलिए
मुझ तक आने के रास्ते सारे चिपचिपे।
bahut hud tak sahi...

vandana gupta said...

bahut sundar bhav.........har pankti apne aap mein bahut kuch kahti huyi.