Sunday, February 15, 2009

एक पुनर्वास की जरूरत सभी को है

मौसम विस्थापित हो गए हैं
और मौसम के साथ-साथ एहसास भी

कोयल की कूक, मोर का नाच
सरसों का फूलना, आम का मंजराना...
गोभी की सब्जी और गेंदे के फूल जाड़े में
गर्मी में आंधी, जाड़े में ओले
और बारिश में बारिश ...
और अमावस के दिन घुप्प अँधेरा

आदमी का मुस्कुराना
औरत के जूडे में बेली का खिलना
ऑफिस से लौटते समय आंखों में अक्सर वसंत लाना
साँसों की छुअन से तार का बजना
मान जाने के लिए रूठना

मौसम और एहसास में से कोई भी अपने जगह पे नही
सभी को पुनर्वास की जरूरत है.

6 comments:

Anonymous said...

अद्भुत शब्द रचना..

संध्या आर्य said...

मौसम और एहसास में से कोई भी अपने जगह पे नही
सभी को पुनर्वास की जरूरत है.
yah bahut hi unda khyal hai.iska mujhe ek karan yah lagata hai ki
samajik chetana ka abhaw kahi prakriti visthapan ka vajah to nahi.

vandana gupta said...

adbhut sanyojan.........mausam aur ahsaas ke beech........waah waah.

हरकीरत ' हीर' said...

Aarya ji, sabse pehle comt k liye shukriya..!

मौसम और एहसास में से कोई भी अपने जगह पे नही
सभी को पुनर्वास की जरूरत है.

अद्भुत शब्द रचना है....pr ye jade me ole wali bat .....??
..

समीर सृज़न said...

आदमी का मुस्कुराना
औरत के जूडे में बेली का खिलना
ऑफिस से लौटते समय आंखों में अक्सर वसंत लाना
साँसों की छुअन से तार का बजना
मान जाने के लिए रुठना...
बहुत अच्छी रचना है..मौसम के बहाने आपने दिल कि बातो को शब्दों का अच्छा रूप दिया है...

डॉ .अनुराग said...

बेहद खूबसूरत .....