Monday, February 23, 2009

जुगलबंदी

तुम्हारी जुगलबंदी में
अक्सर बन जाती है कोई धुन

तुम्हारे साथ होना
मध्य रात्रि से थोड़ा पहले,
जब सारे स्वर शांत हो गए होते हैं,
राग मालकौंस के साथ होने जैसा है

तुम्हारे विशाल आगोश में
एक मुलायम धुन बहती है
और उसपे बहता है मेरा नाजुक सा एक ख्याल

तुम्हें जब से सुना है
तब से ,
तुम्हें छोड़ कर
कुछ भी सुनना व्यर्थ लगता है

तुम्ही तो हो सबकुछ मेरे अब
ओ मेरी तन्हाई
मेरे अकेलेपन , खालीपन
मेरा सन्नाटा।

आओ अपनी बाजुओं में फ़िर से ले लो मुझे

8 comments:

अनिल कान्त said...

तुम्ही तो हो सब कुछ मेरे अब ....वाह बहुत खूब

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

Udan Tashtari said...

वाह वाह!! क्या बात है!!!

संगीता पुरी said...

बहुत ही सुंदर लिखा है..;महा शिव रात्रि की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं..

vandana gupta said...

tanhaiyon ki aawaz sunne ke baad aur kuch suna jata nhi .........khamoshi se aati hain aur sach kaha apne bajuon mein le leti hain.

waah kya baat hai.

हरकीरत ' हीर' said...

तुम्हें जब से सुना है
तब से ,
तुम्हें छोड़ कर
कुछ भी सुनना व्यर्थ लगता है

तुम्ही तो हो सबकुछ मेरे अब
ओ मेरी तन्हाई

waah waah....bhot khoob....!! Om ji mujhe pehle se hi shanka hone lagi thi k ye koi ladki to ho hi nahi sakti....bhot sunder rachna....!!

ओम आर्य said...

thank you all, for reading and appreciating my piece of writing. many many thanks.

संध्या आर्य said...

तुम्ही तो हो सबकुछ मेरे अब
ओ मेरी तन्हाई
मेरे अकेलेपन , खालीपन
मेरा सन्नाटा।


Rag malkous jaisee khubsoorat,is rachana ke liye bahutsaree shubhkamanaye.

कंचन सिंह चौहान said...

kuchh kahane ko nahi hota...aap ki chhoti bato ke baad