हर नयी कविता
जगह बनाती है
दूसरी नयी कविता के लिए
प्रकृति के हर जीव की तरह
कवितायेँ भी रखती हैं अपना बीज
स्वयं में हीं
और लगातार बचाती हैं हरीतिमा
***
जरूरी होती हैं कवितायेँ
कवितायेँ न हो
तो हो सकता है मैं भी
किसी कटघरे में होऊं
और मुझ पर कोई मुकदमा हो
जब तक कवितायें हैं
तब तक मुझे आस है
कि कुछ और लोग भी बचते रहेंगे
कटघरे में होने से
***
19 comments:
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अच्छी प्रस्तुती के लिये आपका आभार
खुशखबरी
हिन्दी ब्लाँग जगत के लिये ब्लाँग संकलक चिट्ठाप्रहरी को शुरु कर दिया गया है । आप अपने ब्लाँग को चिट्ठाप्रहरी मे जोङकर एक सच्चे प्रहरी बनेँ , कृपया यहाँ एक चटका लगाकर देखेँ>>
शानदार रचना , बेमिशाल, बेहतरीन! बहुत ही सुन्दर!
बहुत सटीक बात ...सुन्दर अभिव्यक्ति
दूसरी वाली बहुत पसंद आई. आपकी सोच ही कविता है.
जरूरी होती हैं कवितायेँ
कविता का यह आशावाद और आशावाद की यह कविता बहुत सुकून भरी है...कवि होने के लिये मनुष्य होना जरूरी शर्त है..और मनुष्य हो पाने के लिये कवि होना जरूरी हो है..कविताएँ लोगों को कटघरे मे खड़े होने से बचायेंगी भी..और गुनाहगारों को कटघरे मे खड़ा करने की भूमिका भी निभायेंगी..
..हरितिमा के बीज यूँ ही बचे रहें गहरे अँधेरों की कोख मे भी...
आनंददायक रहा..और आश्वस्तिकारक भी!
Sundar rachana!
15 August kee dheron shubhkamnayen!
आह ...आखिरी ४ पंक्तियाँ तो दिल की सतह तक गईं हैं ...
बहुत सुन्दर रचना.
जी बिल्कुल ! जब तक कविताएँ है तबतक सुरक्षित है हमारा होना ।
बेहद सुन्दर प्रस्तुति……………कविताओं के अस्तित्व पर एक बेहद उम्दा रचना।
कटघरे में तो कविता भी खड़ी होती है..
मुकद्दमे उस पर भी चलते है फिर भी कवि को आस बंधाती है..
ओम जी भाव के भंडार है आप ..सुंदर कविता..बधाई..स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
main.kayal hoon aapki kalam ki..!
मंगलवार 17 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
हर एक सांस मे प्रकृति
सांस लेते हुये
जन्म देती है
जीवन को
हर जीवन आकार लेते हुये
निराकार स्वप्नो मे
तबदिल हो रचता है
कविता और बचाता है
कविता की हरीतिमा !
सच कहा आपने...बहुत से कटघरो में आने से बचा लेती हैं ये कवितायेँ.
जब तक कवितायें हैं
तब तक मुझे आस है
कि कुछ और लोग भी बचते रहेंगे
कटघरे में होने से
यकीनन सच तो यही है ...
एक आशावादी और खूबसूरत पन्तियाँ....काफी दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आया ..एक अच्छी रचना से सुकून मिला मन को.
नवनीत नीरव
प्रकृति के हर जीव की तरह
कवितायेँ भी रखती हैं अपना बीज
स्वयं में हीं
और लगातार बचाती हैं हरीतिमा.
बहुत ही सुंदर रचना ओम.
इसीलिये ज़िन्दगी मे कविता की ज़रूरत है
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