Saturday, August 14, 2010

कवितायेँ बचाती है हरीतिमा

हर नयी कविता
जगह बनाती है
दूसरी नयी कविता के लिए

प्रकृति के हर जीव की तरह
कवितायेँ भी रखती हैं अपना बीज
स्वयं में हीं
और लगातार बचाती हैं हरीतिमा

***


जरूरी होती हैं कवितायेँ

कवितायेँ न हो
तो हो सकता है मैं भी
किसी कटघरे में होऊं
और मुझ पर कोई मुकदमा हो

जब तक कवितायें हैं
तब तक मुझे आस है
कि कुछ और लोग भी बचते रहेंगे
कटघरे में होने से

***

19 comments:

चिट्ठाप्रहरी टीम said...

like
अच्छी प्रस्तुती के लिये आपका आभार


खुशखबरी

हिन्दी ब्लाँग जगत के लिये ब्लाँग संकलक चिट्ठाप्रहरी को शुरु कर दिया गया है । आप अपने ब्लाँग को चिट्ठाप्रहरी मे जोङकर एक सच्चे प्रहरी बनेँ , कृपया यहाँ एक चटका लगाकर देखेँ>>

nilesh mathur said...

शानदार रचना , बेमिशाल, बेहतरीन! बहुत ही सुन्दर!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सटीक बात ...सुन्दर अभिव्यक्ति

सागर said...

दूसरी वाली बहुत पसंद आई. आपकी सोच ही कविता है.

अपूर्व said...

जरूरी होती हैं कवितायेँ

कविता का यह आशावाद और आशावाद की यह कविता बहुत सुकून भरी है...कवि होने के लिये मनुष्य होना जरूरी शर्त है..और मनुष्य हो पाने के लिये कवि होना जरूरी हो है..कविताएँ लोगों को कटघरे मे खड़े होने से बचायेंगी भी..और गुनाहगारों को कटघरे मे खड़ा करने की भूमिका भी निभायेंगी..
..हरितिमा के बीज यूँ ही बचे रहें गहरे अँधेरों की कोख मे भी...
आनंददायक रहा..और आश्वस्तिकारक भी!

kshama said...

Sundar rachana!
15 August kee dheron shubhkamnayen!

shikha varshney said...

आह ...आखिरी ४ पंक्तियाँ तो दिल की सतह तक गईं हैं ...
बहुत सुन्दर रचना.

सुशीला पुरी said...

जी बिल्कुल ! जब तक कविताएँ है तबतक सुरक्षित है हमारा होना ।

vandana gupta said...

बेहद सुन्दर प्रस्तुति……………कविताओं के अस्तित्व पर एक बेहद उम्दा रचना।

डिम्पल मल्होत्रा said...

कटघरे में तो कविता भी खड़ी होती है..
मुकद्दमे उस पर भी चलते है फिर भी कवि को आस बंधाती है..

विनोद कुमार पांडेय said...

ओम जी भाव के भंडार है आप ..सुंदर कविता..बधाई..स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

Parul kanani said...

main.kayal hoon aapki kalam ki..!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मंगलवार 17 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार

http://charchamanch.blogspot.com/

संध्या आर्य said...

हर एक सांस मे प्रकृति
सांस लेते हुये
जन्म देती है
जीवन को

हर जीवन आकार लेते हुये
निराकार स्वप्नो मे
तबदिल हो रचता है
कविता और बचाता है
कविता की हरीतिमा !

अनामिका की सदायें ...... said...

सच कहा आपने...बहुत से कटघरो में आने से बचा लेती हैं ये कवितायेँ.

M VERMA said...

जब तक कवितायें हैं
तब तक मुझे आस है
कि कुछ और लोग भी बचते रहेंगे
कटघरे में होने से

यकीनन सच तो यही है ...

नवनीत नीरव said...

एक आशावादी और खूबसूरत पन्तियाँ....काफी दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आया ..एक अच्छी रचना से सुकून मिला मन को.

नवनीत नीरव

Meenu Khare said...

प्रकृति के हर जीव की तरह
कवितायेँ भी रखती हैं अपना बीज
स्वयं में हीं
और लगातार बचाती हैं हरीतिमा.


बहुत ही सुंदर रचना ओम.

शरद कोकास said...

इसीलिये ज़िन्दगी मे कविता की ज़रूरत है