जाना नहीं हुआ उस तरफ
ताकने का मन नहीं हुआ बिलकुल भी
बहुत दिन हुए
देखी नहीं कोई कविता
अभी जिधर कविता का होना है
उधर पत्थर फेंकती औरतें हैं,
जीप जलाते मासूम
और देखते हीं गोली मार देने के लिए
तत्पर हथियारबंद
उसकी तरफ देखने से
कभी भी लग सकती है आँख में गोली
कविता जब खो देती है विश्वास
उसके साथ जाने में डर लगता है
और कवि का डर
टूटा नहीं है अब तक
***
13 comments:
bahut khoob achha likha hai badhai
विचारणीय ..
विस्फोटो मे छिन्न भिन्न होना
समय के चप्पू का थोडा थमना और
तेज़ होना
बह गये थे सारे खून जिस्म से
जन्मी थी कभी
उसके पसीजे हथेली से
बह गये थे चप्पूओ के रफ्तार मे
तिनको पर
अंतिम सहारे से लगकर
बहने के अंदाज और रफ्तार दोनो मे
ठहराव है आजकल
कभी घण्टो बहते पानी पर
मछ्लियाँ चप्पूओ से खेलती थी
समय के उछाल से
समंदर भी नम हो जाता है
किनारो से लगकर
थमे वक्त की सांसे
लग जाती है चाँद के सीने से
क्योकि धडकनो को
एतबार नही है
चप्पूओ की रफ्तारो पर!
Zindagee ke yahi sach hain...! Inheen se to upji aapki yah kavita!
कोई श्राप लगा है कश्मीर को... इतनी खूबसूरत वादी लहू से लाल रहती है और रहने वाले बेहाल
soch bhi kabhi kabhi lafzon ko naya aayam deti hai..aisa hi kuch dikha hai mujhe..just amazing!
बहुत ही सामयिक और विचारणीय कविता...
कविता जब खो देती है विश्वास
उसके साथ जाने में डर लगता है
और कवि का डर
टूटा नहीं है अब तक
जाने क्या होने वाला है, जब कविता ही विश्वास खो दे तो...
व्यंजना मे आपने कितनी दूर की बात कर दी ! पर मुझे पूरा विश्वास है कविता आप पर अपना विश्वास नहीं खोएगी .....इसके बाद आप और लिखेंगे.... और भी सुंदर लिखेंगे ...... और ज्यादा लिखेंगे ।
बेहद उम्दा भाव हैं।
कविता की शुरुआत बेहद खूबसूरत है ,.....ऐसा लगता है आप कुछ कहने निकले है ...अंत में कही ओर मुड गए शायद
बहुत दिन बाद आने के लिये क्षमा चाहती हूँ बहुत उमदा रचना है। बधाई
एक तो आप दिखते बहुत कम हैं आजकल..पता नही कहाँ हैं..दूसरे कविताओं मे व्यथित करने वाला मोहभंग दीख पड़ता है..जब-तब..दोनों बातों मे कोई संबंध हो जरूरी नही..मगर कविता के कोमल पंख अक्सर तल्ख वास्तविकता की पैनी धूप मे झुलस जाते हैं...मगर कविता की सबसे बड़ी जरूरत भी वहीं होती है..इन्ही पंखों को कोमल संवेदनाओं को छाँव देनी होती है...
यह बहुत गहरे घाव देता है..
उसकी तरफ देखने से
कभी भी लग सकती है आँख में गोली
कविता जब खो देती है विश्वास
उसके साथ जाने में डर लगता है
और कवि का डर
टूटा नहीं है अब तक
यह खोया हुआ विश्वास उस डर से परे होने पर ही हासिल होगा. कवि यूँ तो डरता नहीं और डर भी गया तो यह डर कुछ रचनात्मक दिशा ही प्रदान करती है.
सुन्दर रचना .. सुन्दर लक्षणा .. सुन्दर व्यंजना
Post a Comment