जहाँ बैठ कर मैं रोया था
वहां अभी तक
तुम्हारे कंधे नहीं पहुंचे
मैं अक्सर टाल जाता हूँ
वहां से गुजरना,
वहां बैठ कर सुबकता हुआ मैं
तेज कर देता है अपना रोना
मुझे देखते हीं
पर अक्सर नहीं भी टाल पाता
और ये देखने पहुँच हीं जाता हूँ
कि शायद तुम्हारे कंधे पहुँच गए हों अब
मैं जानता हूँ
कहाँ होंगे तुम्हारे कंधे अभी
और अगर पहुंचूं वहां मैं
तो तुम रोक न पाओ और बढ़ा दो उन्हें
पर जाने कौन है
जो जिद पे अड़ा है कि
वे कंधे वहां क्यूँ नहीं पहुंचे अभी तक
जहाँ बैठ कर मैं रोया था
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Sunday, October 24, 2010
Friday, October 8, 2010
वो वक्त अतीत में गिर गया है
यह बिलकुल हीं रात है
और इसकी परिधि के भीतर
ठीक चाँद इतनी खाली जगह है
और बाकी सभी जगह अमावस बिछी हुई है
इस वक्त उस खाली जगह को महसूसना हीं
मेरी कविता है
और उसे लिख देना
तुम्हें पा लेने जैसा है
पर तुमने जाते हुए
वक्त को दो हिस्सों में बाँट दिया था
और वक्त का वो हिस्सा जिसमें कवितायेँ
लिखी जानी थी,
अतीत में गिर गया है
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और इसकी परिधि के भीतर
ठीक चाँद इतनी खाली जगह है
और बाकी सभी जगह अमावस बिछी हुई है
इस वक्त उस खाली जगह को महसूसना हीं
मेरी कविता है
और उसे लिख देना
तुम्हें पा लेने जैसा है
पर तुमने जाते हुए
वक्त को दो हिस्सों में बाँट दिया था
और वक्त का वो हिस्सा जिसमें कवितायेँ
लिखी जानी थी,
अतीत में गिर गया है
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