यह बिलकुल हीं रात है
और इसकी परिधि के भीतर
ठीक चाँद इतनी खाली जगह है
और बाकी सभी जगह अमावस बिछी हुई है
इस वक्त उस खाली जगह को महसूसना हीं
मेरी कविता है
और उसे लिख देना
तुम्हें पा लेने जैसा है
पर तुमने जाते हुए
वक्त को दो हिस्सों में बाँट दिया था
और वक्त का वो हिस्सा जिसमें कवितायेँ
लिखी जानी थी,
अतीत में गिर गया है
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28 comments:
इस वक्त उस खाली जगह को महसूसना हीं
मेरी कविता है
और उसे लिख देना
तुम्हें पा लेने जैसा है
क्या ख्याल लिखा है…………बेहतरीन्।
waah! dil se nikli hui rachna hai
हम अतीत को खींच लायेंगे, आप रेगुलर रहिये बस
sundar kavita
्नवरात्रि मंगलमय हों…………
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
बेह्तरीन भाव निरूपण
इस वक्त उस खाली जगह को महसूसना हीं
मेरी कविता है
और उसे लिख देना
तुम्हें पा लेने जैसा है
क्या बात कही है...
पर तुमने जाते हुए
वक्त को दो हिस्सों में बाँट दिया था
और वक्त का वो हिस्सा जिसमें कवितायेँ
लिखी जानी थी,
अतीत में गिर गया है
एकदम अलग अंदाज़ है इस बार...और बहुत खूब है !
तेरे खत से आज गिरते
सुखे अक्षरो की खुशबू
भींगा जाते है अलको को
पन्नो की नमियो मे
आज भी जिंदा है
तेरे लम्स !
अमावसी राते उसकी आंखो के
काजल है जो
नजरो से बचा लेती है
आज वह माथे का
टीका है
जिसे तू चाँद कहता है
और अतित सुहागन सी
चाँदनी की चादर पर रौशन है
महसूसी गयी कविताओ मे !
कविता मायूस है...जैसे कोई सदमे उठा रही हो...
ऐसा कैसे सोच लेते हैं आपलोग? बहुत ही अच्छे बिम्ब हैं.
आज तो बिलकुल हट कर लिखा है आपने तो..... कमाल है....
गहरे भावो से भरी कविता.
एक लम्बे समय के बाद आपकी रचना पढ़ी
अच्छा लगा
नवरात्री की शुभकामनाएं
मकड़े की चाल देखें यहाँ
धर्म का हाल यहाँ देखें
और वक़्त का वो हिस्सा जिसमें कविताएं
लिखी जानी थी
अतीत में गिर गया हे।
वाह...सच्चे अर्थों में सम्पूर्ण कविता है यह, कविता का एक भी शब्द हटाया नहीं जा सकता ...एक एक शब्द गहन अर्थों से संयुक्त है...बधाई।
इसमे कविता की के नई परिभाषा है ।
उफ, यह ज़ालिम अतीत।
waah....
ओह !!!!!!!!!!! वह खाली जगह !
Ek alag kism ki kavita.. pasand aayi.. :)
बेमिसाल !! इस पर कुछ कहने की औकात नहीं मेरी
Bahut Khoob ..........
6/10
गहरे भाव के साथ ऊंचे दर्जे की उत्कृष्ट रचना
आपके शब्द और भाव एक बार फिर मौन कर गए...अद्भुत लेखन...बधाई
नीरज
behtareen hain is kavita ke khayaal hai ...achha hai ki aap ateet me gaye aur us hisse me ja kar jisme kavitayen likhi janee theen aapne yah kavita likhi .... :)
जीवन चंद्र-कलाओं के तर्कों को नही मानता..यहाँ एक बार अमावस्या होने के बाद चाँद फिर सिर्फ़ काली रोशनाई तले सफ़ेद सफ़्हों मे ही निकलता है..मगर इस कागज की खेती की यह खासियत भी है..कि जिन कविताओं की कलमें मन के प्यासे गमलों मे सूख जाती हैं..वे पीड़ा की मिट्टी मे अनायास पैदा होती हैं..और फिर कागज पर चाँद की जगह खाली नही रह जाती..
वाह.....
लाजवाब !!!!! इससे अधिक कुछ कहने की गुंजाइश कहाँ बची है..
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