जब से प्रेम और कविताओं के बारे में
यह कहा जाने लगा है कि
वे अब महज वस्तुएं हैं
मैं बाजार में पड़े उत्पादों से
आँख मिलाने से कतराता हूँ
मेरे लिए प्रेम, कवितायें हैं
उनका अभाव कचोटती हुई कवितायें हैं
और प्रेम के पश्चात
अस्तित्व में आया प्रेम का अभाव
और भी ज्यादा कचोटती हुई कविता
और कभी जब तुम्हें भेजने के लिए
मैंने 'पैक' की थीं कवितायें
तब भी वे वस्तुएं नहीं थीं
वे कभी भी वस्तु नहीं हुईं मेरे लिए
तुम्हारी आँखें,
जहाँ मैं मजबूत दीखता था
वहां भी झांकते हुए डर लगता है
जिसकी वजह वो अंदेशा है
कि प्रेम तुम्हारी आँखों में डूब गया हो सकता है
और वहां उन आँखों के समंदर में
कविताओं की तैरती हुई लाश देखना
बेहद डरावना होगा
पर अंजाम से बेपरवाह होकर
मुझे देखना है एक बार तुम्हारी आँखों में
जहाँ मेरी तैरती हुई लाश हो सकती है
या फिर वो विश्वास
जिसे आँख भर, भर कर
मैं भष्म कर सकूं वो आवाजें
जिनमें कहा जाता है कि
प्रेम और कवितायें महज वस्तुएं हैं अब
और तब देखना चाहूँगा
बाजार में पड़े वस्तुओं की लिजलिजी स्थिति !!
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16 comments:
dusra paira,
Marhaba
प्रेम प्रेम है वस्तु नहीं ..खूबसूरती से लिखी नज़्म
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
aafareen
कहाँ कहाँ तक जाती है आपकी सोच ....
प्रेम और कवितायें भी वस्तु हो जाती हैं यदि जीवंत नहीं रहती हैं।
Sach hai...prem kabhi wastu nahi ho sakti!
Aapki rachana ne Gulazaar ji ka wo mashhoor geet yaad dila diya," Hamne dekhi hai us aankhon ki mahakti khushboo...!"Mana ki,aapka content alag hai,phirbhi...
प्रेम .. और कविता
वस्तुएं हैं .....
... ......... .... ...... ..... !!
बाज़ार
और बाज़ारवाद के परिणाम को
सही ढंग से परिभाषित करते हुए
सटीक शब्द .....
एक...प्रभावशाली कविता .
अभिवादन स्वीकारें .
काश उन आवाजों को भष्म किया जा सकता, जो ये कहती हैं कि प्रेम और कविताएँ वस्तुएँ हैं.
हमेशा की तरह गहन बेहद गहन्……………दिल को छूने की काबिलियत है ।
नव वर्ष मंगलमय हो।
प्रेम और कवितायें वस्तुएं बन गयी हैं और हमने वस्तुओं से प्यार करना सीख लिया है .,..
WISH YOU A VERY VERY HAPPY NEW YEAR 2011 ...
आपकी व्यंजना ने अभिभूत किया ! हार्दिक बधाई !
हर व्यक्ति की तरह चीजों की भी एक उम्र होती है पर कविताएँ इनसब से परे की चीज़ है.उन्हें कभी न कभी पढ़ा ही जायेगा.
प्रेम का इन बाजारी मापदंडों पर काव्यात्मक ’इवैल्युएशन’ काफ़ी सोचने पर विवश करता जान पड़ता है..पैकेजिंग के दौर मे जहाँ हर चीज की परिभाषा मे बाजारी आंकड़े शामिल होते हैं..वहाँ प्रेम की यह निस्पृहता आपकी कविता मे भली लगती है..और उम्मीद जगाती भी....बशर्ते कविता मे आशावाद कायम रहे..
सच कहा है अपने ॐजी , प्रेम और कविता कभी वस्तुयें नहीं हो सकते... यह सिर्फ एहसास हैं. एक जीवित होने का और दूसरा अपने आप को जीवन-माला में जोड़ने का!
बधाई!
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