Wednesday, January 26, 2011

मुझमें अब बहुत शीशा और पारा है...

तुम तक लौटना है
और राह बनती नहीं

कई बार यूँ हुआ है कि
रखता गया हूँ
लब्जों को एक के ऊपर एक
और लगा है राह तुम तक पहुँचने की
मिल गयी अब
पर फिर जाने क्या होता है
एक एक कर सारे लब्ज मुंह मोड़ लेते है
और तय किये सारे रास्ते
फिर सामने आ खड़े होते हैं

अब जबकि भर चुका है
मेरी हवा में इतना शीशा
और मेरे पानी में इतना पारा
मुझे लौटना हीं होगा तेरे गर्भ में ओ मेरी नज़्म
और फिर जन्मना होगा अपने मूल ताम्बई रंग में
पाक होकर

मुझे तुम तक लौटना हीं लौटना है
पर जो मैं न लौट सकूं तुम तक
तो तुम आगे बढ़ आना ओ मेरी नज़्म
मुझमें अब बहुत शीशा और पारा है...

__________

15 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

हमारा निर्मल मन न जाने कहाँ खो गया है, कोई लौटा दे।

sonal said...

कभी तो परिष्कृत होंगे ..ज़हर से परे जो घुल चुका है हमारे तन और मन में सामान रूप से ...
बढ़िया

kshama said...

Bahut gahrayi me jaake likhte hain aap!

shikha varshney said...

बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़ने को मिली.
बहुत सुन्दर,आभार.

Kailash Sharma said...

बहुत गहन चिंतन..बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति

संध्या आर्य said...

गोल पृथ्वी के मांथे पर
बिंदी है लाल
पर आंख
सूनी और विरान है
सुखी पलके
नमी की तलाश में
खोज रही है
हरा रंग
चल
रौप देते है
चंद उम्मीद धरती पर
जो पैदा करेंगी
इंसानियत !

vandana gupta said...

आह! एक बार फिर कमाल का लेखन्………कुछ कहने मे असमर्थ्।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

क्‍या बात है ओम भाई, छा गये आप।

---------
हंसी का विज्ञान।
ज्‍योतिष,अंकविद्या,हस्‍तरेखा,टोना-टोटका।

Parul kanani said...

bahut bahut khoobsurat..

pallavi trivedi said...

hamesha ki tarah...superb.

***Punam*** said...

कई बार यूँ हुआ है........

......................................

और तय किये सारे रास्ते

फिर सामने आ खड़े होते हैं "



ज़िन्दगी में कई बार ऐसा ही होता है जब कि

अनुकूल होते-होते परिस्थितियां प्रतिकूल हो जाती हैं..

और हम बस.............................

यथार्थ ..एकदम यथार्थ !!!!

केवल राम said...

मुझे लौटना हीं होगा तेरे गर्भ में ओ मेरी नज़्म
और फिर जन्मना होगा अपने मूल ताम्बई रंग में
पाक होकर

और यह पाक होने की प्रक्रिया अनवरत चलती रहे ....नज्म के माध्यम से ....

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

सुंदर अभिव्यक्ति। एक नवजात शावक की तरह।

रंजना said...

ओह...क्या बात कही....

मनमोहक लाजवाब कृति....

आभार इस सुन्दर रचना को पढवाने के लिए...

Prakash Jain said...

Aapki nazmon/kavitaon ka silsila yun hi chalta rahe...

Har koi inhe sadantar padhta rahe,
vicharon ka ya chirag sadev jalta rahe....