Friday, April 22, 2011

मुझमें प्रेम नहीं अब!

1.

हम सब
या फिर हम सब में से ज्यादातर
बड़े हुए
और फिर बूढ़े
और मर गए एक दिन
बेमतलब

और बुद्ध और कबीर के कहे पे
पानी फेर दिया

2.

प्रकृति ने भूलवश रच दी मृत्यु
और जन्म उस भूल के एवज में रचना पड़ा उसे

मृत्यु भी
झूठ लगती है अब

सभी हैं जीने को अभिशप्त !

3.

जब तक मैं शामिल नहीं हूँ
तब तक मुझे आस है
कि कुछ और लोग भी नहीं होंगे
उस बुरे कृत्य में शामिल

भले हीं दिखाई न पड़ें वे

4.

जितनी मोची पाता है
फटे जूते की मरम्मत कर के
या फिर कुम्हार घड़े बना के उठा लेता है सुख

उतना भी नहीं हासिल है मुझे
तुम्हें लिख के
कविता

मुझमें प्रेम नहीं अब!

_____________

18 comments:

मनोज कुमार said...

विचारोत्तेजक रचनाएं।

kshama said...

Bahut sundar rachanayen! Jeevan-mrutyu dono hee prakrutee ke niyam hain! Kabhee,kabhee lagta hai,ki,bhool hain!

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही चिन्तनशील, जीने को अभिशप्त हम सब।

Udan Tashtari said...

जबरदस्त...

***Punam*** said...

आपकी सारी रचनाएं अपने विषय को लेकर गहरे अर्थ में पिरोई रहती हैं..

हमेशा की तरह सुन्दर अभिव्यक्ति..... !!

पूर्णिमा वर्मन said...

बहुत खूब लिखा है ओम आर्य जी, रचनाएँ पसंद आईं...संवेदनाओं से भरी हृदयस्पर्शी विशेष रूप से अंतिम रचना।

संजय भास्‍कर said...

ला-जवाब" जबर्दस्त!!

संजय भास्‍कर said...

ओम आर्य जी,
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

vandana gupta said...

हमेशा की तरह गहन अर्थ संजोये उम्दा अभिव्यक्ति।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह चारों ही कविताएं बहुत सुंदर हैं.

अमिताभ मीत said...

भाई heavy weight है ...... कमाल है .... बहुत ही ज़बरदस्त !!

सुशीला पुरी said...

मितकथन की सुन्दर मिसाल हैं ये कवितायेँ !!

वाणी गीत said...

उतना भी हासिल नहीं मुझे ...
मुझमे प्रेम नहीं है अब ...

सभी क्षणिकाएं मन को छूती हैं !

डिम्पल मल्होत्रा said...

लगातार कितनी कवितायों में आपने लिखा कि प्रेम नहीं रहा,नहीं बचा...देखिये लगातार "प्रेम" शब्द बना हुआ है और बना रहेगा आपकी कवितायों में....:)

मीनाक्षी said...

चिंतन करने को बाध्य करती पंक्तियाँ ..

Fani Raj Mani CHANDAN said...

प्रकृति ने भूलवश रच दी मृत्यु
और जन्म उस भूल के एवज में रचना पड़ा उसे

मृत्यु भी
झूठ लगती है अब

सभी हैं जीने को अभिशप्त !

Bahut sundar rachnaa hai...

pallavi trivedi said...

pahli aur chauthi bahut pasand aayi...

Parul kanani said...

ek se badhkar ek....!