Thursday, May 5, 2011

वे सब लोग अब मर नहीं पाएंगे

बहुत से लोग
जो प्यार में कभी मर गए थे
और अब प्यार में जीने के लिए फिर पैदा हुए थे
उनकी मुश्किल थी कि
उन्हें लोग नहीं मिलते थे
जिन पे प्यार में वे दुबारा मर सकें
और सुकून हो

अकूत प्रेम अब कहीं नहीं दीखता था
फिल्मों में भी नहीं
जहाँ सिर्फ अभिनय से भी काम चलाया जा सकता है

कविता काफी देर तक
माथे पे हाथ रखे सोंचती थी
कि कुछ लिखे
कि वे सब लोग प्रेम पढ़ कर सुकून से मर सकें
जो मर के मरना चाहते थे

पर शब्दों का कहना था
कि वे अब उस तरह नहीं लिखे जा सकेंगे
जिस तरह पढ़े जाने की जरूरत है
इसलिए शायद
वे सब लोग अब मर नहीं पाएंगे

______________

9 comments:

pallavi trivedi said...

खालिस तुम्हारे अंदाज़ की कविता है...उम्दा.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कविता काफी देर तक
माथे पे हाथ रखे सोंचती थी
कि कुछ लिखे
कि वे सब लोग प्रेम पढ़ कर सुकून से मर सकें
जो मर के मरना चाहते थे

बहुत गहन भाव ....

आपसे मिलाना सुखकर था ..आभार मिलने का ..

प्रवीण पाण्डेय said...

जो प्यार पाने के लिये पुनः पैदा हुये, वे अब मर नहीं पायेंगे जब तक उन्हे प्यार नहीं मिल जायेगा।

Smart Indian said...

प्रेम आसानी से मिटाया जा सकता है, ढाई अक्षर होते ही कितने हैं?

virendra sharma said...

"aapke sundar bhaavon ko samarpit panktiyaan -binaa ehsaas ke zindaa hoon ,isliyen ki ,jab kabhi ehsaas laute ,khairmakdam kar sakoon ."
sundar bhaav poorn kriti ke liye badhaai .
veerubhai .

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

प्रेम मकड़जाल है...

vandana gupta said...

पर शब्दों का कहना था
कि वे अब उस तरह नहीं लिखे जा सकेंगे
जिस तरह पढ़े जाने की जरूरत है
इसलिए शायद
वे सब लोग अब मर नहीं पाएंगे

आह! हमेशा की तरह एक बार फिर नायाब रचना…………सोच की आखिरी सीढी पर जाकर कविता फिर मुडती है…………गज़ब्।
बस एक अफ़सोस रहा उस दिन 30 अप्रैल को आप आये और मिले नही दूर से ही निकल गये।

Pawan Kumar said...

ओम जी
यह कविता भी पाठक से सीधा संपर्क स्थापित कर लेती है..बिना किसी भूमिका के पाता पढता जाता है उअर कविता में डूबता जाता है....
शायद यही इस कविता की सफलता का प्रतीक है.
कविता काफी देर तक
माथे पे हाथ रखे सोंचती थी
कि कुछ लिखे
कि वे सब लोग प्रेम पढ़ कर सुकून से मर सकें
जो मर के मरना चाहते थे......
Excellent

***Punam*** said...

"कविता काफी देर तक
माथे पे हाथ रख कर सोचती थी
कि कुछ लिखे
कि वे सब लोग प्रेम पढ़ कर सुकून से मर सकें
जो मर के मरना चाहते थे

पर शब्दों का कहना था
कि वे अब उस तरह नहीं लिखे जा सकेंगे
जिस तरह पढ़े जाने की ज़रुरत है
इसलिए शायद
वे सब लोग अब मर नहीं पायेंगे "

सही कहा..
यदि वे लोग फिर से वापस आ गए
तो पुन: प्रेम पढ़ कर मरना
उन्हें शायद मुनासिब न हो सके...


just excellent....!!