Friday, July 1, 2011

देश सबके लिए आजाद हो...

सवाल छोटे हों
और संक्षेप में दिए जा सकें उनके जबाब
या फिर वस्तुनिष्ट हों तो और भी अच्छे

नाम आसानी से बदले जा सकें
जैसे बदल दिए जाते हैं कपडे
नाम के लिए ना लिखी जाएँ कवितायें

बस्तों में इतनी खाली जगह हो
कि उसमें रखे जा सकें तितलियाँ, कागज़ के नाव
और पतंग भी

जिनके पास पैसा हो
सिर्फ उन्ही के पास पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य न हो
जीने का अधिकार सिर्फ संविधान में न हो

अस्पताल में दवाइयां मिल जाएँ
और स्कूल में शिक्षा
और कलेक्टर का बच्चा भी सरकारी स्कूल में पढ़े

महंगाई के प्रति सब उदासीन न हों
दाम बढ़ें तो आवाज बुलंद हो

सड़क के दोनों तरफ उनके लिए फूटपाथ हों
और शहर में कुछ ढाबे हों
जहाँ बीस-पच्चीस रुपये में भर पेट खाना मिलता हो

देश सबके लिए आजाद हो...


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13 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सबका देश पर समुचित अधिकार हो।

kshama said...

Sach! Aisa azad desh ho apna! Ek sapna -sa lagta hai! Behad sundar,sanjeeda rachana!

sonal said...

wow

सागर said...

Aameeen !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

काश ऐसा हो ..अच्छी अभिव्यक्ति

Yashwant R. B. Mathur said...

ऐसा अगर हो तो कितना अच्छा हो.

सादर

वीना श्रीवास्तव said...

लाजवाब....

GAJANAN RATHOD said...

Om Ji Badhai - bade sahaj dhang se badi hi sanjida abhivyakti - Awaj buland hi to nahi hai.....

VIVEK VK JAIN said...

wow!!

Fani Raj Mani CHANDAN said...

Brilliant!!! Aisi aazaadi ki kalpana hum log na jaane kab se kiye jaa rahe hai... kaash wo kalpanaa sach ka roop dharan kar le

aabhar
Fani Raj

Smart Indian said...

साधारणजन की मूलभूत आवश्यकतायें पूरी होनी ही चाहिये।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सचमुच, तभी है आजादी की सार्थकता।

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कब तक ढ़ोना है मम्‍मी, यह बस्‍ते का भार?
आओ लल्‍लू, आओ पलल्‍लू, सुनलो नई कहानी।

M VERMA said...

बस्तों में इतनी खाली जगह हो
कि उसमें रखे जा सकें तितलियाँ, कागज़ के नाव
और पतंग भी
और फिर ...
जीने का अधिकार सिर्फ संविधान में न हो

सार्थक सोच और जीवन से जुडी रचना