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Saturday, February 5, 2011

बदन पर का सतही तनाव बढ़ता जाता है

पिछला साल ख़त्म हुआ
और ये नया साल भी
अपनी रोजमर्रा की चाल से चलता हुआ
एक महीना और पांच दिन गुजार चुका है
और तमाम कोशिशों के बाबजूद
इस नए साल में
मैं प्यार नहीं कर पाया हूँ तुम्हें

दोष किसी भी चीज के मत्थे मढ़ दूं
पर हकीकत कुछ और है
और वो बहुत तेजी से बेचैन कर रहा है मुझे
और चौंकाता है कि
बिना प्यार के हीं चल रहा हूँ मैं आजकल

मुझे नहीं मालूम था
कि अचानक से ये खो जाएगा एक दिन
मृत्यु के पहले हीं
और मुझे केवल सांस के सहारे
छोड़ दिया जाएगा

तभी तो कभी जरूरत नहीं समझी जानने की
कि कहाँ से उगता है,
कैसा है इसका बीज और
किसने रोपा था इसे
और अब तो कहीं दीखता हीं नहीं ये
अब कहाँ पानी डालूँ, कहाँ दिखाऊं धूप

पतझड़ में नंगी शाखों की पीड़ा
अब बहुत घनी है मुझमें
बदन पर का सतही तनाव बढ़ता चला जाता है
दरारें उगती आती हैं

तुम तक पहुँचने की
और तुम्हारा ह्रदय छू लेने की उत्कंठा
उत्कट हुई जा रही है
मैं मर रहा हूँ
और जाने क्यूँ ऐसा लग रहा है कि
तुम देख भी नहीं पा रही
तुम तक पहुँचने की मेरी जद्दोजहद

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