एक लंबे समय तक
अलग रह जाने के बाद,
फिर से अपने शहर में लौटना
काई चीजों से
एक साथ जुड़ जाने जैसा होता है
जो गलियाँ और रास्ते
जो खिड़कियाँ और छतें
जो पेड़ और बगीचे
स्मृतियों में अपनी जगह बचाते-बचाते
लुप्त हो रहे होते हैं
अपने शहर में लौटना
उन सबों को एक साथ
वापस ले आने जैसा होता है
हालांकि
जब भी लौटते हैं अपने शहर
हम लौटते हैं के
निश्चित समय के लिए
फिर से लौट जाने की पूरी तैयारी के साथ
हमारे पास होते हैं
उंगलियों पे गिने हुए दिन
और रातें
जिनके लिए होती हैं पूर्व निश्चित योजनाये
और वादे, किए हुए
काई बार
शहर पहुँचने और लौटने के
बीच वक़्त इतना ठसा होता है
कि हम कह नही पाते कुछ, शहर
से हम सुन नही पाते कुछ, शहर की
नही देख पाते शहर को आँख भर
कई बार
शहर जान भी नही
पाता हमारे पहुँचने के बारे में
और हम लौट आते हैं
इन सबके बावजूद
भी जब हम लौटते हैं
अपने शहर से
शहर से हमारा संवाद
पूरा हो गया लगता है।
2 comments:
यह तो अपने और अपने शहर के साथ सरासर धोका है. आभार.
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काबिले तारीफ़ लिखा है तूने. पढकर सुकून मिला. तुमने मेरी बात भी लिख दी है. सब लोगो की ही. जो कविता हर किसी को लगे मेरी बात है वही तो है सही कविता.
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