जानती हूँ
छू लूँगी तुम्हारा हृदय एक दिन
पहुँच जाउन्गी तुम्हारे अंतरतम् तक,
कभी न कभी
इस जनम से उस जनम तक,
और तुम मुस्कुरा दोगे मेरी छुअन को महसूस करके
और तब तुम्हारे अंदर क़ी पूरी कायनात गुदगुदा जाएगी
और सच मानो, तमन्ना भी यही है………
इससे रत्ती भर भी ज्यादा नही।
जानती हूँ कि वक़्त कुछ लंबा है अभी
और रूखा भी
पर जानती हूँ रिस जाएगा ये भी
लम्हा-लम्हा करके
देखते हुए मेरी प्रतीक्षा
कोई रंज नही कि
अभी तक बंद रखे हैं तुमने
द्वार अपने अंतरतम् के
पर, जानती हूँ
जिस दिन खोलोगे
पाओगे मेरे स्पर्श को खडे वहाँ
इन्तेजार करते
पर जब खोलोगे
सुनना चाहूँगी तुमसे
की द्वार अनजाने में बंद हो गया था तुमसे
या फिर बंद रखना तुम्हारी भूल थी
और तुम भी बरसों से महसूसना चाहते हो
अपने हृदया पर मेरी उंगलियों क़ी छुअन।
सिर्फ इतना चाहूँगी
सुनना
बोलोगे न तुम !!!
5 comments:
ओह ! बहुत बहुत भावपूर्ण.......
अतिसुन्दर......
और तुम भी बरसों से महसूसना चाहते हो
अपने हृदया पर मेरी उंगलियों क़ी छुअन।
सिर्फ इतना चाहूँगी
सुनना
बोलोगे न तुम !!!अतिसुन्दर......
बोलोगे न तुम...
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना ..
जानती हूँ
छू लूँगी तुम्हारा हृदय एक दिन
पहुँच जाउन्गी तुम्हारे अंतरतम् तक,
कभी न कभी
इस जनम से उस जनम तक,
बहुत अच्छा लिखा है.
बहुत सुन्दर रचना. प्रतिक्रिया भी ज्यादातर महिलाओ के. क्या बात है.
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