Thursday, December 18, 2008
जाओ, अब देर मत करो!
एक असहाय क्रन्दन
उस बच्चे की भाँति
जो किसी मेले में गुम गया है
या फिर
जिसे छोड़ कर
चली गयी है माँ उसकी,
उसके देखते
वो रो रही है
वो रो रही है
तुम्हारे अभाव में
छाती में सांस पूर नही रहा
वो रो रही है
बुक्का फाड़ कार
उसकी आँखें अब
जार-जार... तार-तार...
डर है
यह उसका आखरी रूदन ना हो
और किसी भी पल
फट ना जाए उसकी छाती
वॅक्क्यूम की वजह से
बढ्ते दबाब के कारण
मैं चाहता हूँ
तुम अभी पहुँचों वहाँ तुरंत
और लगाओ उसे अपनी छाती से
और लगाए रखो
जब तक वो चुप ना हो जाए
धीरे-धीरे रोते-सुबकते
हाथ बढ़ा कर
पोंछ दो आँखों को
पोंछ दो
इससे पहले
कि तुम बह कर निकल जाओ वहाँ से
जाओ, अब देर मत करो!
Friday, December 12, 2008
कल रात
रात का काफी बडा हिस्सा
नूर की आगोश में जागता रहा
समंदर साहिल पे आकर
चहलकदमी करता रहा
ख्वाब बिजली के खंभों के नीचे
बैठे ऊंघते रहे
हर तरफ से वक़्त फिसल कर
गिरती रही तन्हाई के अंधे कुँए में
मौन अपने हद तक चीख कर
बेअवाज हो गयी आखिरकार
नींद नहीं आई कल रात भी
कल रात तुमने फिर परेशां किया
बहुत तकलीफ दी तुमने कल
तुम्हारी हूक
कल रात फिर
फंस गयी थी सीने में .
Monday, December 8, 2008
बिल्कुल नही अब!!!
मेरे प्रेम पे वो ठहरता नही
मगर फिराक में रहता है
कि अपनी वासना से
पछाड़ता रहे मुझे
अपने ताकत के तल्ले से,
मसलता है मुझे
जैसे हीं उसके पीने क़ी
तलब मिट जाती है
वो मुझे गोल-गोल घूमाता है
छल्ले से छल्ला निकालता है
मुझे धुआँ बनाकर,
खेलने कि धुन में रहता है अक्सर
वो चाहता है कि
मैं उसके बनाए छल्ले के
भीतर हीं रहूँ
उसके कोल्हू से लगी
मेरी आवाज़ पे
वो कान नही धरता
और जब देखो तब
अपनी आवाज़ आजमाता रहता है मुझ पर
मैं चाहती हूँ
कहनाकि ये सब
और नही होगा मुझसे
बिल्कुल नही अब!!!
मगर फिराक में रहता है
कि अपनी वासना से
पछाड़ता रहे मुझे
अपने ताकत के तल्ले से,
मसलता है मुझे
जैसे हीं उसके पीने क़ी
तलब मिट जाती है
वो मुझे गोल-गोल घूमाता है
छल्ले से छल्ला निकालता है
मुझे धुआँ बनाकर,
खेलने कि धुन में रहता है अक्सर
वो चाहता है कि
मैं उसके बनाए छल्ले के
भीतर हीं रहूँ
उसके कोल्हू से लगी
मेरी आवाज़ पे
वो कान नही धरता
और जब देखो तब
अपनी आवाज़ आजमाता रहता है मुझ पर
मैं चाहती हूँ
कहनाकि ये सब
और नही होगा मुझसे
बिल्कुल नही अब!!!
Friday, December 5, 2008
फुरसत
तुम अपनी जगह बिलकुल सही हो.
तुम्हारा कहना बिलकुल सही,
पर मेरे पास
फुरसत इतनी सी है कि
रुक कर थोडा हांफ सकूं
अब तुम्ही बताओ
कि कोशिश भी करून तो
हांफते हुए कितना
और कैसा प्यार किया जा सकता है!!!
Thursday, December 4, 2008
अबकी बार सर्दी में
देखती रहती हूँ उसका रूप
जैसे जाड़े में
वो हो कोई धुप
और सेंक कर सो जाना चाहती हूँ
छु लेती हूँ उसकी देह
इस तरह कि लगे
यूँ हिन् अनजाने में छु गयी हो
पता नहीं
अपना स्पर्श देने के लिए
या उसकी छुअन pआने के लिए
अपनी धडकनों कों
उसके करीब ले जा कर
छोडा है कई बार
कि शायद कभी छिड़ जाए उसके भी
साँसों में माचिस
मैं इंतज़ार में हूँ कि
कब उसकी लौ जले
और वो मुझे अपनी लपट में ले ले
सर्दी में
अकेलेपन की आग
बहुत जलाती है.
Monday, December 1, 2008
अपने माहौल में रहने देना
तुम्हारे बहाव में
बह जाने के लिए,
मैं अक्सर जाता हूँ
अपने किनारे से चलते हुए
तुम्हारे मंझधार तक
वो जो कुछ पल हैं मेरे पास
तुम्हारी ताप वाले
उनमें जाकर स्थिर हो रहना
मुझे देता है
आगे जीने की ऊर्जा
मैं खाली कर के
हमेशा रखता हूँ कुछ स्थितियां
ताकि तुम आओ तो
उनमें कुछ भर सको उनमें
मध्धम से तेज
हर तरह की धुप में
तुम्हारा रूप
भरता रहता है
मेरा कोशा कोशा
रात जब भी
अपने खालीपन में
लडखडाती हुई गिरी है
सुबह उठ कर पाया है
तेरी जमीन को
नीचे से थामे हुए उसको
बस आख़िर में
यही गुजारिश है
अपने ही माहौल में
मुझे रहने देना हमेशा
इसी तरह
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