Thursday, December 18, 2008
जाओ, अब देर मत करो!
एक असहाय क्रन्दन
उस बच्चे की भाँति
जो किसी मेले में गुम गया है
या फिर
जिसे छोड़ कर
चली गयी है माँ उसकी,
उसके देखते
वो रो रही है
वो रो रही है
तुम्हारे अभाव में
छाती में सांस पूर नही रहा
वो रो रही है
बुक्का फाड़ कार
उसकी आँखें अब
जार-जार... तार-तार...
डर है
यह उसका आखरी रूदन ना हो
और किसी भी पल
फट ना जाए उसकी छाती
वॅक्क्यूम की वजह से
बढ्ते दबाब के कारण
मैं चाहता हूँ
तुम अभी पहुँचों वहाँ तुरंत
और लगाओ उसे अपनी छाती से
और लगाए रखो
जब तक वो चुप ना हो जाए
धीरे-धीरे रोते-सुबकते
हाथ बढ़ा कर
पोंछ दो आँखों को
पोंछ दो
इससे पहले
कि तुम बह कर निकल जाओ वहाँ से
जाओ, अब देर मत करो!
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2 comments:
बहुत अच्छी कविता व्यथा का बहुत सुन्दर वर्णन
महाशक्ति
भावुक कविता अपने पीछे कई मम्र लिए हुए
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